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________________ जीवन के उष.काल से ही महावीर चिन्तनशील थे। उनका उर्वर मस्तिष्क सदा-सर्वदा अध्यात्म सागर की गहराई में डुबकियां लगाता रहता था। वे संसार में थे, किन्तु जल मे कमल की तरह उससे सदा निर्लिप्त रहते । बाहर में सब कुछ था पर अन्तर मे वे सदा अपने को एकाकी आत्मरूप, देखते थे। बचपन से जब यौवन के मधुर उद्यान में प्रवेश किया तब भी वे उमी प्रकार अनासक्त एवं उदासीन थे। उनकी यह उदासीनता देखकर माता-पिता के मन में चिता भरे विकल्प उठे कि-कही पुत्र श्रमण न बन जाय । तदर्थ उन्होंने महावीर को मसार की मोहमाया मे बाधने हेतु विवाह का प्रस्ताव किया। उधर वसन्तपुर के महासामन्त समरवीर ने भी लावण्य व रूप मे अद्वितीय मुन्दरी अपनी पुत्री यशोदा के साथ वर्धमान के पाणिग्रहण का प्रस्ताव सिद्धार्थ गजा के पास भेजा। महावीर की अन्तरात्मा उसे स्वीकार करना नही चाहती, किन्तु माता के प्रेम भरे आग्रह को और पिता के हठ को उनका भावुक हृदय टाल नही सका। उन्होंने विवाह का बन्धन स्वीकार किया किन्तु विषय-वासना की कर्दम मे वे कमल की भाँति सदा ऊपर उठे रहे । यशोदा की कुक्षि से एक पुत्री भी हुई, जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया ।८° उमका पाणिग्रहण भगवान की भगिनी सुदर्शना के पुत्र जमालि के माथ हुआ।' .. मूल : समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिया कासवे गोत्तेणं, तस्स णं तओ नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा-सिद्धत्थे इ वा सेज्जंसे इ वा जसंसे इ वा ॥१०५॥ अर्थ-श्रमण भगवान महावीर के पिता काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम इस प्रकार है यथा - सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। मूल : समणस्स णं भगवओ महावीरस्स माया वासिहा गोत्तेणं
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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