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________________ १४२ কথ বুম विवेचन-भगवान महावीर का लालन पालन उच्च एवं पवित्र संस्कारों के भव्य वातावरण में हुआ। उनके सभी लक्षण होनहार के थे । सुकुमार सुमन की तरह उनका बचपन नई अंगड़ाई ले रहा था। उनका इठलाता हुआ तन सुगठित, बलिष्ठ और स्वर्ण प्रभा-सा कान्तिमान था और मुखमण्डल सूर्य-सा तेजस्वितापूर्ण । उनका हृदय मखमल-मा कोमल और भावनाएँ ममुद्र-सी विराट थी। बालक होने पर भी वे वीर, साहसी और धैर्यशाली थे । शुक्ल पक्ष के चन्द्र को तरह वे बढ रहे थे। उनके मन मे सहज शौर्य और पराक्रम की लहरें उठ रही थी। एक बार वे अपने हमजोले सगी साथियों के साथ गृहोद्यान (प्रमदवन) में क्रीड़ा कर रहे थे। इस क्रीडा में सभी बालक किसी एक वृक्ष को लक्ष्य करके दौड़ते, जो बालक सबसे पहले वृक्ष पर चढ़कर नीचे उतर आता वह जीत जाता। विजयी बालक पराजित बच्चो के कंधों पर चढ़कर उस स्थान पर जाता जहाँ से दौड़ शुरु की थी। इसे सुकली या आमलकी क्रीड़ा कहा जाता था। उस समय देवराज देवेन्द्र ने बालक वर्धमान के वोरत्व एवं पराक्रम की प्रशंसा की। एक अभिमानी देव शक्र की प्रशसा की चुनौती देता हुआ उनके साहस की परीक्षा लेने के लिए भयंकर सर्प का रूप धारण कर उस वृक्ष पर लिपट गया। अन्य सभी बालक फुकार करते हुए नागराज को निहार कर भयभीत होकर वहां से भाग गये, पर किशोर वर्धमान ने बिना डरे और बिना झिझके उस सर्प को पकड एक तरफ रख दिया ।'७४ बालक पुनः एकत्र हुए और खेल फिर प्रारम्भ हुआ, इस बार वे 'तिदुषक क्रीड़ा' खेलने लगे। जिसमें किसी एक वृक्ष को अनुलक्ष कर सभी बालक दौड़ते। जो सर्वप्रथम वृक्ष को छू लेता, वह विजयी होता और जो पराजित होता उसकी पीठ पर विजयी बालक आरूढ़ होता। इस बार वह देव भी किशोर का रूप धारण कर उस क्रीड़ादल में सम्मिलित हो गया। खेल में वर्धमान के साथ हार जाने पर नियमानुसार उसे वर्धमान को पीठ पर बैठाकर दौड़ना पड़ा। किशोर रूप धारी देव दौड़ता-दौड़ता बहुत आगे निकल गया। और उसने अपना विकराल रूप बना वर्धमान को डराना चाहा। देखते ही देखते किशोर ने लम्बा ताड़-मा भयकर पिशाच रूप बना लिया । ७५ किन्तु
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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