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________________ जन्म महोत्सव १४१ जब से हमारा यह पुत्र गर्भ में आया तब से लेकर हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य की दृष्टि से व प्रीति और सत्कार की दृष्टि से हमारी अभिवृद्धि होने लगी है, सामन्त राजा लोग भी हमारे वश में हुए है, इस कारण जब हमारा पुत्र जन्म लेगा तब हम उसके अनुरूप उसके गुणों का अनुसरण करने वाला, गुण निष्पन्न और यथार्थनाम 'वर्द्धमान' रखेगे। तो अब इस कुमार का नाम 'वर्द्धभान हो अर्थात् यह कुमार वर्द्धमान के नाम से प्रसिद्ध हो (ऐमा हमारा विचार है)। ------. बाल्य काल एवं यौवन मूल : समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते णं, तस्स णं तओ नामधेज्जा एवमाहिज्जति. तं जहा-अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे१, सहसम्मुईयाते समणे२, अयले भयभेरवाणं परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे पडिमाणं पालए धीमं अरतिरतिसहे दविए वीरियसंपन्न देवेहिं से णाम कयं समणे भगवं महावीरे३ ॥१०४॥ ____ अर्थ-श्रमण भगवान महावीर काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम इस प्रकार कहे जाते है-उनके माता-पिता ने उनका प्रथम नाम 'वर्द्धमान' रखा। स्वाभाविक स्मरण शक्ति के कारण (महज सद्बुद्धि के कारण भी) उनका द्वितीय नाम 'श्रमण' हुआ अर्थात् महज शारीरिक एव बौद्धिक स्फूर्ति व शक्ति से उन्होने तप आदि आध्यात्मिक माधना के मार्ग में कठिन परिश्रम किया एतदर्थ वे श्रमण कहलाये । किसी भी प्रकार का भय, (देव, दानव, मानव और तिर्यच सम्बन्धी) उत्पन्न होने पर भी अचल रहने वाले, अपने सकल्प से तनिक मात्र भी विचलित नही होने वाले निष्कम्प, किसी भी प्रकार के परीषहक्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण आदि के सकट आए या उपसर्ग उपस्थित हो तथापि चलित नहीं होते। उन परीषहो और उपसर्गों को शान्त भाव से महन करने में समर्थ भिक्षु प्रतिमाओं का पालन करने वाले, धीमान शोक और हर्ष मे समभावी, मद्गुणों के आगार अतुलबली होने के कारण देवताओं ने उनका तृतीय नाम 'महावीर' रखा।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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