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________________ १३२ कल्प सूत्र ईशान दिशा में सूतिका गृह का निर्माण किया (6) मेघकरा, (१०) मेघवती, (११) सुमेघा, (१२) मेघमालिनी, (१३) तोयधारा, (१४) विचित्रा, (१५) वारिषेणा, (१६) बलाहिका । ये आठों दिक्कुमारियाँ ऊर्वलोक में रहती हैं। उन्होंने आकर नमस्कार किया, सुगन्धित जल और पुष्पों की वृष्टि की। (१७) नंदा, (१८) उत्तरानन्दा, (१६) आनन्दा, (२०) नंदिवर्धना, (२१) विजया, (२२) वैजयन्ती, (२३) जयंती, (२४) अपराजिता। ये आठों दिककुमारियाँ पूर्व दिशा के रुचक पर्वत में रहती हैं । मुख दिखाने हेतु दर्पण सामने करती हैं। (२५) समाहारा, (२६) सुप्रदत्ता, (२७) सुप्रबुद्धा, (२८) यशोधरा, (२६) लक्ष्मीवती, (३०) शेषवती, (३१) चित्रगुप्ता, (३२) वसुन्धरा। ये आठों दिक्कुमारियां दक्षिण दिशा के रुचक पर्वत में रहती हैं, स्नान हेतु जल सम्पूरित कलश लाती है । (३३) इलादेवी, (३४) सुरादेवी, (३५) पृथिवी, (३६) पद्मवती, (३७) एकनासा, (३८) नवमिका, (३६) भद्रा और (४०) शीता, ये आठों दिक्कुमारियाँ पश्चिम दिशा के रुचक पर्वत पर रहती हैं। ये पवन करने के लिए पंखा लेकर आती हैं। (४१) अलबुसा, (४२) मितकेशी, (४३) पुडरीका, (४४) वारुणी, (४५) हासा, (४६) सर्वप्रभा, (४७) श्री और (४८) ही ये आठों दिक्कुमारियाँ उत्तर दिशा के रूचक पर्वत पर रहती हैं। ये चामर वींजती है । (४६) चित्रा, (५०) चित्रकनका, (५१) शतोरा, (५२) वसुदामिनी, ये चारों दिक्कुमारियां रूचक पर्वत की विदिशाओ में से आती हैं । दीपक लेकर विदिशाओ में खड़ी रहती है। (५३) रूपा, (५४) रूपासिका, (५५) सुरूपा और (५६) रूपकावती ये चारों दिक्कुमारियाँ रुचक द्वीप में रहती हैं। ये भगवान् के नाल का छेदन करती है। तेल का मर्दन कर स्नान कराती है। विभिन्न दिशाओं में रहने वाली ये दिक्कुमारियां आई और भगवान का सूतिका कर्म करके, जन्मोत्सव मनाया और अपने स्थान को चली गई। भगवान् का जन्म होते ही शक्रेन्द्र का सिंहासन कम्पित हुआ। वह अवधिज्ञान से भगवान का जन्म जानकर आह्लादित हुआ। अनेक देव-देवियों के परिवार के साथ कुण्डपुर आया। साथ ही, भवन पति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवनिकाय के इन्द्र और देवगण भी आये। उन्होंने भगवान्
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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