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यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि स्थविरावली मे जो देवद्धगणी क्षमाश्रमण तक के नाम आये हैं, वे श्रुतकेवली भद्रबाहु के द्वारा वर्णित नहीं है, अपितु आगम वाचना के समय इसमें संकलित कर दिये गये हैं।
मुनि श्री पुण्यविजय जी के अभिमतानुसार समाचारी विभाग में 'अंतरा वि से कपई नो से ears तं रर्याणि उवायणावित्तए" यह पाठ, संभवत आचार्य कालक के पश्चात् का बनाया गया हो । संक्षेप मे सार यह है - श्रुतकेवली भद्रबाहु के रचित कल्पसूत्र मे अन्य आगमों की तरह कुछ अंश प्रक्षिप्त हुआ है। प्रक्षिप्त अंश को देखकर श्री बेवर ने जो यह धारणा बनायी कि कल्पसूत्र का मुख्य भाग देवद्विगणी के द्वारा रचित है, और मुनि अमरविजयजी के शिष्य चतुरविजय जी ने द्वितीय भद्रबाहु की रचना मानी है, यह कथन प्रामाणिक नहीं है।
आज अनेकानेक प्रमाणो से यह सिद्ध हो चुका है कि कल्पसूत्र बतकेवली भद्रबाहु की रचना है, जब दशा श्रुत स्वस्थ भद्रबाहु निर्मित है, तो कल्पसूत्र उसी का एक विभाग होने के कारण वह भद्रबाहु का हो निर्मित है, वा निर्यूठ है ।
यहाँ पर यह भी स्मरण रखना चाहिए कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने दशाभूतस्कन्ध आदि जो आगम लिखे है, वे कल्पना की उड़ान में नहीं लिखे है अपितु उन्होने दणाध तस्कध, निशीष, व्यवहार, और वृहत्कल्प से सभी आगम नौवें पूर्व के प्रत्यास्थान विभाग से उद्धृत किये हैं। पूर्व गणधरकृत है, तो ये आगम भी पूर्वो से नियूंढ होने के कारण एक दृष्टि से गणधरकृत ही है ।
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दशा तस्कंध छेद सूत्र मे होने पर भी प्रायश्चित्त सूत्र नही है, किन्तु आचार सूत्र है एतदर्थं आचार्यों ने इसे चरणकरणानुयोग के विभाग में लिया है।" छेदसूत्रो मे दशाअतस्कघ को मुख्य स्थान दिया गया है। जब दशाध तस्कंध छेद सूत्रो मे मुख्य है, तो उसी का विभाग होने से कल्पसूत्र की मुख्यता स्वतः सिद्ध है । दशाश्रु तस्कंध का उल्लेख मूलसूत्र उत्तगध्ययन के इकतीसवें अध्ययन मे भी हआ है ।१३
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इण्डियन एण्टीक्वेरी जि० २१० २१२-२१३
मंत्राधिराज चिन्तामणि जैन स्तोत्र स दोह, प्रस्तावना १० १२-१३ प्रकाशक- साराभाई मणिलाल नवाब अहमदाबाद सन् १९३६ ।
९. (क) वंदामि भट्ट बाहू पाडणं चरिमसयलसुवणाणि
तस्स कारमिसि दसासु कप्पे य बवहारे ।
(ख) तेग भगवया आयारपकप्प दसावयववहारा य नवमपुब्वनीस दभूतानिज्यूठा
११. इहं चरणकरणाणुओगेण अधिकारी ।
१२. इमं पुणच्छे मुहभूत |
११. पणवीसभावनाहिं, उसेसु
- दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति मा० १
१०. कतरं सुतं ? दसा उकप्पो यवहारो य । कतराती उद्धृत ? उच्यते - पन्चक्खाणपुम्बाओ ।
दशाइणं । जे भिक्खु जयई निच्च से न अच्छाई मण्डले ।
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- पंचकल्पभाष्य गाथा २३ घूर्णि
- दशाशुनस्कंध पूणि पत्र २ - दशाश्रुतस्कंध, चूर्णि पत्र २ - दशान स्कंध, चूर्णि पत्र २
- उत्तराध्ययन अ० ३१ गा० १७