________________
गर्ष को स्थिरता पर शोक
१२३ करने लगी। भूमि की ओर दृष्टि केन्द्रित कर चिन्ता करने लगी। उस समय सिद्धार्थ राजा का सम्पूर्ण घर शोकाकुल हो गया। जहां पर पहले मृदङ्ग, वीणा आदि वाद्य बजते थे, रास क्रीड़ाएँ होती थी, नाटक होते थे जय-जयकार होता था, वहाँ सर्वत्र शून्यता व्याप्त हो गई, उदासी छा गई।
विवेचन-माँ वात्सल्य को अमरमूर्ति है। उसकी ममता निराली है। संसार की कोई भी शक्ति उस ममता की होड़ नही कर सकती। पुत्र, मों की ममता का मेरु है, हृदय है, प्राण है ! उसके लिए वह स्वयं कष्ट की धधकती ज्वालाओं में झुलसती है, पर प्यारे लाल को तनिक भी कष्ट में देखना नहीं चाहती। उसका तनिक कष्ट भी उसके लिए असह्य है।
भगवान महावीर ने मातृस्नेह के कारण ज्योंही हिलना-डुलना बन्द किया, त्योंही माता त्रिशला अकल्पनीय कल्पना के प्रवाह में बहकर फूट-फूटकर रोने लगी। दारुण-विलाप करने लगी।
"हाय ! यह क्या हो गया। मेरा गर्भस्थ बालक हिलता-डुलता क्यो नही है ? क्या उसका अपहरण हो गया है ? क्या वह नष्ट हो गया है ? क्या किसी ने मेरे पुत्र-रत्न को छीन लिया है ?"
"हे भगवन् ! ऐसा मैंने कौन-सा भयकर पाप किया था जिसके कारण ऐसा अनर्थ हुआ है । हे भगवन् ! क्या मैंने पूर्वभव में किसी का गर्भ गिराया ? क्या मैने किसी माँ से प्यारे लाल का बिछोह कराया? क्या मैंने किन्हीं पक्षियों के अण्डे नष्ट किये ? क्या मैंने चूहों के बिलो में गर्म पानी डालकर उनके बच्चों का घात किया ? हाय प्रभो ! अब यह करुण कहानी किसे सुनाऊँ ? हे भगवन् ! मैं वस्तुतः पापिनी हूँ ! अभागिनी हूँ !"
महारानी त्रिशला के करुण-क्रन्दन को सुनकर दासियां दौड़ आयीं । वाणी में मिश्री घोलती हई बोली-"रानीजी । आप क्यों रो रही हैं ? आपका मुख कमल क्यों मुरझा गया है ? आपका देह तो स्वस्थ है न ? आपका गर्भस्थ बालक तो सकुशल है न ?
रानी ने निश्वास डालते हुए कहा-"क्या कहूँ ! हृदय फट रहा है, मन