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स्वप्नफल कथन
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देखे गए स्वप्न का फल तीन मास में प्राप्त होता है और चतुर्थ पहर में जो स्वप्न दीखते हैं उनका फल एक मास में प्राप्त होता हैं । सूर्योदय से दो घड़ी पूर्व जो स्वप्न देखे जाते हैं उनका फल दस दिन में प्राप्त होता है और सूर्योदय के समय देखे जाने वाले स्वप्न का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है ।'
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भारत की प्राचीन स्वप्न शास्त्र सम्बन्धी मान्यता का कुछ दिग्दर्शन नीचे कराया जाता है - जो व्यक्ति एक स्वप्न के पश्चात् दूसरा स्वप्न देखता हो, मानसिक अथवा शारीरिक व्याधि से ग्रसित होकर स्वप्न देखता हो, मलसूत्र की रुकावट के कारण स्वप्न देखता हो उसका स्वप्न निरर्थक होता है ।'
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जो व्यक्ति धर्मनिष्ठ है, जिसके शरीर की धातुएँ सम है, चित्त स्थिर है जो इन्द्रिय विजेता है, संयमी और दयालु है, उसका स्वप्न यथेष्ट फल प्रदाता होता है। यदि किसी को किसी प्रकार का दुस्वप्न आ जाए तो, उसे किसी भी अन्य व्यक्ति के सामने नहीं कहना चाहिए। न कहने से देता । यदि दुःस्वप्न आने के पश्चात् नींद आ जाय तो नष्ट हो जाता है ।
वह स्वप्न फल नहीं
दुःस्वप्न का फल भी
किसी ने उत्तम स्वप्न देखा हो तो उस स्वप्न को गुरु या योग्य व्यक्ति के सामने कहना चाहिए । यदि योग्य व्यक्ति का अभाव हो तो गाय के कान में ही कह देना चाहिए | उत्तम स्वप्न देखकर पुन: नहीं सोना चाहिए, क्योकि सोने से उसका फल नष्ट हो जाता है । अतः शेष रात्रि धर्म ध्यान व भगवत् - स्मरण में ही व्यतीत करनी चाहिए ।
जो मानव प्रथम अशुभ स्वप्न देखता है और उसके पश्चात् शुभ-स्वप्न देखता है, उसको शुभ स्वप्न का ही फल प्राप्त होता है। जो प्रथम शुभ स्वप्न देखता है और पश्चात् अशुभ स्वप्न देखता है उसको अशुभ स्वप्न का फल प्राप्त होता है । जो मनुष्य स्वप्न में सिंह, तुरङ्ग, हस्ती वृषभ और गाय से युक्त (जुते हुए) रथ पर स्वयं को आरूढ़ देखता है. वह राजा बनता है । जो स्वप्न मे हस्ती, वाहन, आसन, गृह या वस्त्र आदि का अपहरण होता देखता है उस पर राजा की शंका होती है । बन्धुओं से विरोध, और धन की हानि होती है ।