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________________ स्पन-पाठकको बुलाना अर्थ-भद्रासन लगवा करके राजा सिद्धार्थ कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाता है । बुलाकर उन्हें इस प्रकार कहता है-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही अष्टाङ्गमहानिमित्त के सूत्र व अर्थ के पारगामी, विविधशास्त्रों में कुशल ऐसे स्वप्न-लक्षणपाठकों-स्वप्नशास्त्रियों को बुलाके लाओ ! मूल : तए णं ते कोडुबियपुरिसा सिद्धत्थेणं रना एवं वुत्ता समाणा हट्ठा जाव हयहियया करयल जाव पडिसुर्णेति पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तियस्म अंतियात्रो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता कुडग्गामं नगरं मझ मज्झेणं जेणेव सुमिणलक्खणपाढगाणं गिहाई तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता सुविणलक्खणपाढए सदाविति ॥६५॥ अर्थ-अनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष सिद्धार्थराजा के द्वारा इस प्रकार कहने पर प्रसन्न हुए, यावत् उनका हृदय आनन्दित हुआ। वे दोनों हाथों को जोड़कर राजाज्ञा को विनययुक्त वचन से स्वीकार करते हैं। स्वीकार करके सिद्धार्थ क्षत्रिय के पास से निकलते है । निकल करके वे कुण्डग्राम नगर के बीचोंबीच होकर जहाँ स्वप्न-लक्षण-पाठकों के गृह हैं, वहां आते हैं। वहां आकर के स्वप्न-लक्षण पाठकों को बुलाते है । मल: ___ तए णं ते सुविणलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कोड बियपुरिसेहिं सहाविया समाणा हट्टतुट्ठ जाव हियया पहाया क्यबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवराई परिहिया अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा सिद्धत्थकहरियालियकयमंगलमुद्धाणा सरहिंसरहिं गेहेहितो निग्गच्छति।६६।।
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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