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________________ कल्प सूत्र गरनिगमसेद्विसेणावइसत्थवाहदूयसंधिपालसद्धि संपरिवुडे धवलमThe frore इव गगणदिप्पंतरिक्खतारागणाणमज्झे ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ ॥ ६२ ॥ १०२ १५८ अर्थ - (सिद्धार्थ ) व्यायामशाला से बाहर निकल कर जहां पर मज्जनगृह ( स्नानगृह ) है वहां पर आते है। वहां आकर के मज्जनगृह में प्रवेश करते हैं । प्रवेश करके मुक्ताओं के समूह से रमणीय, विविध मणियों तथा रत्नों से जटित भाग वाले सुन्दर स्नान - मण्डप में विविध मणि रत्नादि की कलापूर्ण कारीगरी से निर्मित अद्भुत स्नान- पीठ पर सुखपूर्वक बैठते हैं । वहाँ सिद्धार्थ क्षत्रिय को पुष्पोदक, गधोदक, उष्णोदक, शुभोदक, शुद्धोदक से कल्याणकारक विधि से स्नान विधि विशेषज्ञों द्वारा स्नान कराया गया । तथा स्नान करते समय बहुत प्रकार के सैकड़ों कौतुक उनके शरीर पर किए गये | कल्याणप्रद श्रेष्ठ स्नान विधि पूर्ण होने पर रोएंदार, मुलायम, सुगन्धित रक्त वस्त्र (अंगोछा ) से शरीर को पोछा गया । अनन्तर श्रेष्ठ नवीन एवं बहुमूल्य वस्त्र धारण किये । १५९ शरीर पर सरस सुगंधित गोशीर्ष चन्दन से लेप किया । पवित्र माला पहनी । शरीर पर केसर मिश्रित सुगंधित चूर्ण का छिटकाव किया । मणियों से जड़े हुए स्वर्ण आभूषण पहने | अठारह, नौ, तीन, और एक लड़ी के हार गले में धारण किए । लम्बा लटकता हुआ कटिसूत्र ( करघनी ) धारण कर सुशोभित लगने लगे । और कंठ को शोभित करने वाले विविध प्रकार के भूषण धारण किए । अँगुलियों में अंगूठियां पहनीं । रत्न जटित स्वर्ण के कड़े से और भुजबंध से राजा सिद्धार्थ की दोनों भुजाएँ प्रभास्वर हो उठी । इस प्रकार वह सिद्धार्थ राजा शरीर सौन्दर्य की अदभुत प्रभा से दिव्य लगने लगा। कुण्डल पहनने से उसका मुख चमक रहा था, और मुकुट धारण करने से मस्तक आलोक से जगमगाने लगा था । हृदय हारों से आच्छन्न होने पर दर्शनीय बन गया । अंगूठियों से अंगुलियों की आभा दमक उठी। अनन्तर लम्बे लटकते हुए बहुमूल्य वस्त्र का उत्तरासन धारण किया । निपुण कलाकारों द्वारा निर्मित विविध मणि रत्नों से जटित श्रेष्ठ बहुमूल्य प्रभासमान सुन्दर वीर-वलय पहने। अधिक वर्णन क्या किया जाए ! मानो वह सिद्धार्थ क्षत्रिय साक्षात् कल्पवृक्ष ही हो, इस प्रकार अलंकृत
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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