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________________ अर्थ सहयोगियों को परिचय रेखा ११ जेठमल जी धर्म प्रेमी आगम अभ्यासी हैं । श्रीमान् हस्तीमल जी साहब ने प्रस्तुत प्रकाशन में दो हजार रु० प्रदान कर अपनी आगम अभिरुचि का परिचय दिया है। श्रीमान् छोगालाल जी: श्रीमान छोगालाल जी साहब वर्तमान में हमारे सामने नहीं हैं, किन्तु उनकी पुण्य स्मृति आते ही हृदय गद्गद् हो जाता है । क्या थी उनमें अतिथि सत्कार की उत्कट भावना ! और क्या थी उनमें मुनियों के प्रति गजब की निष्ठा ! वर्तमान मे आपके तीन पुत्र हैं(१) श्री सुखराज जी । (२) श्री घेवरचन्द जी और (३) श्री लालचन्द्र जी। श्रीमान् सुखराज जी : श्री सुखराज जी साहब एक बहुत ही मघर प्रकृति के व्यक्ति हैं। हृदय से उदार हैं और मन से साफ हैं । आगम-व स्तोक माहित्य के अच्छे अभ्यासी हैं। आपकी धार्मिक भावना प्रशसनीय है । आपका व्यवसाय बेंगलोर, मद्रास, और बम्बई में वागरेचा एण्ड कम्पनी के नाम से चलता है । आपके दोनों लघुभ्राता भी धर्म प्रेमी व श्रद्धालु श्रावक हैं । श्री सुखराज जी साहब ने कल्पसूत्र के प्रकाशन में एक हजार का अर्थ सहयोग दिया है। आप बैगलोर में भी श्रावक संघ के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पदों पर रह चुके हैं। स्वर्गीय श्री चन्नीलाल जी के सुपुत्र चनणमल जी एक उत्साही, धर्म प्रेमी सज्जन हैं। श्रीमान् मिश्रीमल जी और उनके सुपुत्र : श्री मिश्रीमल जी साहब का भौतिक देह भी आज हमारे सामने नही है, पर आपकी मधुर स्मृति मानस पटल पर अकित है। आपने वीर पुरुष की तरह संथारा कर अपने जीवन को सफल किया था। आपके वर्तमान में दो पुत्र हैं जिनका नाम क्रमशः श्री ऋषभ चन्द जो और पारसमल जी हैं। दोनो भाई पूज्य पिता की तरह ही धर्मनिष्ठ हैं, और बहुत ही उदार हैं, आपने भी प्रस्तुत कल्पसूत्र के प्रकाशन में दो हजार रुपये प्रदान किये हैं। श्रीमान प्रेमचन्द जी: स्वर्गस्थ श्री प्रेमचन्द जी वागरेचा बहुत ही मधुर स्वभाव के सज्जन थे। धर्म के प्रति उनके मन में अटूट श्रद्धा थी, मन्तों के प्रति गहरी भक्ति थी। आपके चार पुत्र है (१) हरखचन्द जी (२) दीपचन्द जी (३) राणमल जी, और (४) देवीचन्द जी। श्री दीपचन्द जी: श्री दीपचन्द जी एक उत्साही युवक हैं । पूज्य पिता की तरह ही आपकी धार्मिक भावना है। साहित्य के प्रति सहज अभिरुचि है। आपने १००१ रुपये कल्प सत्र के लिए प्रदान किये हैं । इस प्रकार वागरेचा परिवार की और से ६ हजार रुपये कल्पसूत्र के लिए प्राप्त हुए हैं। श्री धीगड़मल जी कानुगा : रांका और वागरेचा परिवार की तरह ही सिवाना गढ़ का कानुगा परिवार भी एक समृद्ध परिवार है । श्रीमान् मुलतानमल जी कानुगा के सुपुत्र श्री धीगड़मल जो साहब
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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