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पुण्णागनागपियंगुसिरीसमोग्गरगमल्लियाजाइजूहियंकोल्लकोजकोरिंटपत्तदमणयणवमालियबउलतिलयवासंतियपउमुप्पलपाडलकुदाइमुत्तसहकारसुरभिगंधि अणुवममणोहरेणं गंधेणं दस दिसाओ वि वासयंत सब्बोउयसुरभिकुसुममल्लधवलविलसंतकंतबहुवनभत्तिचित्तं छप्पयमहुयरिभमरगणगुमुगुमायंतमिलतगुजंतदेसभागं दाम पेच्छह नभंगणतलाओ अोवयंतं ५ ॥३८॥
अर्थ-उसके पश्चात् त्रिशला क्षत्रियाणी ने स्वप्न में आकाश में से नीचे उतरती हुई सुन्दर पुष्पों की माला देखी । वह माला मन्दार के ताजा फूलों से गुंथी हुई बड़ी रमणीय थी। उस माला में चम्पक, अशोक, पुन्नाग, नागकेसर, प्रियंगु, शिरीष, मोगरा, मल्लिका, जाई, जूही, अंकोल, कोज्ज, कोरंट, दमनकपत्र नवमल्लिका, वकुल, तिलक, वासन्ती, सूर्य विकासी और चन्द्र विकासी कमल, पाटल, (गुलाब) कुन्द, अतिमुक्तक, और सहकार के फूल गुथे हुए थे, जिससे उसकी मधुर सौरभ से दशों दिशाएँ महक रही थीं। सर्व ऋतुओं में खिलने वाले पुष्पों से वह निर्मित थी। उस माला का रंग मुख्यतः श्वेत था और यत्रतत्र विविध रंगों के पुष्प भी गुथे हुए थे, जिससे वह बहुत ही मनोहर और रमणीय प्रतीत हो रही थी। विविध रंगों के कारण वह आश्चर्य उत्पन्न करती थी। उसके ऊपर-मध्य और नीचे सर्वत्र भोरे गुजार करते हुए मडरा रहे थे । ऐसी माला को त्रिशला माता ने देखा । मल:
ससि च गोखीरफेणदगरयरययकलसपंडरं मुभं हिययनयणकंतं पडिपुन तिमिरनिकरघणगहिरवितिमिरकर पमाणपक्खं. तरायलेहं कुमुदवणविबोहयं निसासोभगं सुपरिमट्टदप्पणतलोवम हंसपडुवन्न जोइसमुहमंडगं तमरिपु मयणसरापूरं समुहदगपूरग दुम्मणं जणं दतियवज्जियं पायएहिं सोसयंतं पुणो सोम्मचाररूवं