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________________ ८२ मल: तओ पुणो पुण्णचंदवयणा उच्चागयठाणलट्ठसंठियं पसत्थरूवं सुपइट्ठियकणगकुम्भसरिसोवमाणचलणं अच्चुन्नयपीणरइयमंसलउन्नयतणुतंबनिद्धनहं कमलपलाससुकुमालकरचरणकोमलवरंगुलिं कुरुविंदावत्तवट्टाणुपुब्बजंघं निगूढजाणु गयवरकरसरिसपीवरोरु चामीकररइयमेहलाजुत्तकंतविच्छिन्नसोणिचक जच्चंजणभमरजलयपकरउज्जुयसमसंहियतणुयआदेज्जलडहसुकुमालमउयरमणिज्जरोमराई नाभीमंडलविसालसुदरपसत्थजघणं करयलमाइयपसस्थतिवलीयमझ नाणामणिरयणकणगविमलमहातवणिज्जाहारणभूसणविराइयंगमंगिं हारविरायंतकुदमालपरिणद्धजलजलिंतथणजुयलविमलकलसं आइयपत्तियविभूमिएण य सुभगजालुज्जलेण मुत्ताकलावएणं उरत्थदीणारमालियविरइएणं कंठमणिसुत्तएण य कुंडलजुयलुल्लसंतअंसोवसत्तसोभतसप्पभेणं सोभागुणसमुदएण आणणकुडुबिएण कमलामलविसालरमणिज्जलोयणं कमलपज्जलंतकरगहियमुकतोयं लीलावायक्यपक्खएणं सुविसयकमिणघणसपहलवंतकेसहत्थं पउमदहकमलवासिणि सिरिं भगवई पिच्छइ हिमवंतसेलसिहरे दिसागइंदोरुपीवरकराभिसिच्चमाणिं ४ ॥३७॥ अर्थ-उसके पश्चात् पूर्ण चन्द्रवदना त्रिशला क्षत्रियाणी स्वप्न में लक्ष्मी देवी को देखती है । वह लक्ष्मी समुन्नत हिमवान् पर्वत पर उत्पन्न हुए श्रेष्ठ कमल के आसन पर संस्थित थी। प्रशस्त रुपवती थी, उसके चरण-युगल सम्यक् प्रकार से रक्खे हुए सुवर्णमय कच्छप के समान उन्नत थे। उसके भंगुष्ठ उभरे हुए और पुष्ट थे। उसके नाखून रंग से रंजित न होने पर भी रजित प्रतीत हो रहे थे, तथा मांस-युक्त, उभरे हुए, पतले ताम्र की तरह रक्त
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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