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________________ पहरण : गर्म से दूसरे गर्भ में स्थापित करने के लिए, अपने शरीर को अत्यन्त निर्मल बनाने के लिए, शरीरस्थ स्थूल पुद्गल-परमाणुओं को बाहर निकालता है जैसे कि रत्न के, वज्र के, गैड़र्य के, लोहिताक्ष के, मसारगल्ल के, हँसगर्भ के, पुलक के, सौगन्धिक के, ज्योतिरस के, अंजन के, अञ्जन-पलक के, रजत के, जातरूप के, सुभग के, अङ्क के, स्फटिक के, और अरिष्ट आदि सभी जाति के, रत्नों के, स्थूल पुद्गल होते हैं वैसे ही अपने शरीर में जो स्थूल पुद्गल हैं उनको निकालता है और उनके बदले में सूक्ष्म और सार रूप पुद्गों को ग्रहण करता है। मल: परियादित्ता दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्याएणं समोहणइ, समोहणित्ता उत्तरवेउब्वियं रूवं विउव्वइ, उत्तरवेउब्वियं रूवं विउव्वित्ता ताए उक्किहाए तुरियाए चवलाए चंडाए जयणाए उद्ध् याए सिग्याए दिव्वाए देवगईए वीयीवयमाणे वीती २ तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं मझमझणंजेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव माहणकुंडग्गामे नयरे जेणेव उसमदत्तस्स माहणस्स गिहे जेणेव देवाणंदा माहणी तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता आलोए समणस्स भगवओमहावीरस्स पणामं करेइ, करिता देवाणंदाए माहणीए सपरिजणाए ओसोवणिं दलयइ, ओसोवणि दलइत्ता असुहे पोग्गले अवहरइ, अवह रित्ता सुहेपोग्गले पक्खिवइ, सुहे पोग्गले पक्खिवइत्ता 'अणुजाणउ मे भगवं!' ति कटु समणं भगवं महावीरं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं करयलसंपुडेणं गिण्हइ, समणं भगवं महावीरं अव्वावाहं० २ ता जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे, जेणेव सिद्धत्थस्स खत्तियस्स गिहे, जेणेव तिसला खत्तियाणी तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता तिसलाए
SR No.035318
Book TitleKalpasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherAmar Jain Agam Shodh Samsthan
Publication Year1968
Total Pages474
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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