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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका (७-८) बर्नाला (जयपुर राज्य) के वि० स० ३३५ और २८४ के यूप-लेखों में कृतेहि (=कृतैः) ३३५ ज्येष्ठ शु० १५ . कृतेहि (= कृतैः ) २८४ चैत्र शु० १५ . (९.११) बड़वा ( कोटा राज्य) के वि० सं० २९५ के तीन यूप-लेखकृतेहि (कृतैः ) २९५, फाल्गुन शु०५ (१२) उदयपुर राज्य के नांदसा के यूप-लेख में (वि० सं० २८२) 'कृतयो द्वयोवर्षशतयोदयशीतयोः चैत्रपूर्णमास्याम् ।' विक्रम, मालष और कृत संवत् एक ही हैं हम देखते हैं कि अभी तक प्राप्त प्रथम सात शताब्दियों के लेखों में इस काल-गणना को विक्रम संवत् के नाम से संबोधित नहीं किया गया है। यही नहीं, किंतु उसे 'मालव काल' तथा 'कृत काल' कहा गया है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि कृत काल और मालव काल विक्रम संवत् के पर्यायवाची न थे; क्योंकि अन्य असंदिग्ध प्रमाणों से यह बात निश्चित हो जाती है कि ये नाम ईसा के ५७ वर्ष पहले प्रारंभ किए गए संवत् को ही दिए गए थे। उदा. हरण के लिये मंदसोर के शिलालेख में उल्लेखित मालवगणों का ४९३वां वर्ष वि० स० का ही ४९३ वर्ष है। क्योंकि उस समय गुप्तवश का सम्राट कुमारगुप्त शासन कर रहा था। उसका काल ई० ४१४ से ४५४ निश्चित है। अतएव यदि उसके शासन-काल में किसी संवत् का ४९३ वाँ वर्ष पड़ेगा, तो निश्चित हो उस सवत् का प्रारभ ईसा के पूर्व प्रथम शताब्दि के मध्यकाल में ही होना चाहिए अर्थात् वह संवत् विक्रम संवत् ही होगा, क्योंकि उस काल के लगभग किसी अन्य भारतीय संवत् का भी प्रारंभकाल है इस बात को पुष्टि आज तक प्राप्त किसी भी प्रमाण से नहीं होती। सारांश यह कि प्राप्त शिलालेखों से इस बात का कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता कि वि० स० की स्थापना विक्रमादित्य नामक किसी भूपाल ने को थो। यदि यही बात होती तो प्रथम सात शताब्दियों में इस सवत् को विक्रम के नाम से संबद्ध क्यों न किया गया, इसका कोई कारण प्रतीत नहीं होता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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