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________________ विक्रम संवत् ८१ कोई भी नाम नहीं दिया गया है। परंतु इन पंक्तियों के लेखक ने यह बात प्रमाणित कर दी है कि यह ताम्रपट उत्तरकालोन और बनावटी है । विक्रम संवत् या मालव संवत् १ परंतु यदि हम सातवीं शताब्दि से भी प्राचीन शिलालेखों को देखते हैं तो इस संवत् को मालव संवत् के नाम से पाते हैं। मंदसोर के सौं० ४९३ वाले शिलालेख में इस संवत् का वर्णन इस प्रकार किया गया है। :― ( १ ) मालवानां गणस्थित्या याते शतचतुष्टये | त्रिनवत्यधिकेऽब्दानां ऋतौ सेन्यघनस्तने ॥ इसी स्थल से प्राप्तवत् ५८६ के अन्य लेख में (२) 'मालवगण स्थिति-वशारकालज्ञानाय लिखितेषु' इस प्रकार से इस संवत् को उपपत्ति बतलाई गई है। कोटा राज्य के कणस्वा ग्राम से प्राप्त लेख में और ग्वालियर राज्य के ग्यारसपूर के सं० ९३६ वाले लेख में इस संवत् को क्रमशः 'मालवों का संवत्' और 'मालत्र देश का काल' कहा गया है। मालव संवत् या कृत संवत् १ परंतु इन्हीं लेखों के समकालीन अथवा पूर्ववर्ती लेखों के अध्ययन से हम देखते हैं कि इसी काल-गणना को वहाँ पर कृतकाल-गणना कहां गया है(३) नगरी का वि० सं० ४८१ का लेख – 'कृतेषु चतुर्षु वर्षशतेषु एकाशीत्युत्तरेषु अस्यां मालवपूर्वायाम् ।' ( ४ ) राजपूतानास्थित गंगाधर ग्राम का वि० सं०० ४८० का लेख - 'यातेषु चतुर्षु कृतेषु शतेषु श्रशीत्युत्तरेषु ।' (५) मालवा प्रांत के मंदसोर नामक ग्राम से प्राप्त वि० सं० ४६१ का लेख - 'श्री मालवगणास्नाते प्रशस्ते कृतसंज्ञिते । एकषष्ठयधिके प्राप्ते - समाशतचतुष्टये ।' ( ६ ) भरतपुर राज्यांतर्गत विजयगढ़ का वि० सं० ४२८ का लेख - 'कृतेषु चतुर्षु वर्षशतेष्वष्टाविंशेषु ।' > * एपिग्राफियां इंडिका भाग २६ पृ० १८६ ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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