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________________ ७८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका को यह दिखलाने के लिये कि यह संवत् प्राचीन काल से चला आ रहा है, उसने अपने संवत् की आद्य तिथि ६०० वर्ष पूर्व निश्चित की, पर ंतु इतिहास में इस प्रकार का नया सवत्, जिसकी प्रद्यतिथि वास्तविक तिथि से कई शताब्दियों पीछे बतलाई जा रही हो, चलाए जाने का अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिलता। इस बात को गत शताब्दियों में आपादतः संभवनीय इसलिये माना जा रहा था, कि उस समय तक छठीं शताब्दि के पूर्व के ऐसे कोई उल्लेख प्राप्त नहीं थे जिनमें विक्रम संवत् का नाम हो । परंतु अब ईसा की तीसरी, चौथी व पाँचवीं शताब्दि में भी इस संवत् का उल्लेख मिला है। श्रतएव उपर्युक्त मत का त्याग श्रवश्यंभावी है । इसलिये वि० सं० (विक्रम स ंवत् ) का प्रारंभ ईसा के ५७ वर्ष पूर्व ही हुआ यह निश्चित है । अब हम इस पर विचार करेंगे कि इस संवत् का प्रारंभ किसने और किसलिये किया । कुछ प्रचलित मत विक्रम संवत् की उपपत्ति के विषय में विद्वानों में अनेक मत प्रचलित हैं। चूँकि इस संवत् का प्रारंभ ई० पू० ५७ वर्ष के लगभग हुआ, इसलिये यह बात स्पष्ट ही है कि इसकी नींव तत्कालीन किसी प्रतापी सम्राट् ने ही डाली होगी । परतु उस समय विक्रमादित्य नामक किसी सामर्थ्यवान् शासक के होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। इसी आधार पर, उस समय पंजाब में राज्य करनेवाले पार्थियन राजा अस (Azes) ने ही इसका प्रारंभ किया होगा, ऐसा सर जॉन मार्शल का कथन है । अझेस ने उसी समय के लगभग एक नया संवत् चलाया था, यह बात सत्य है परंतु एक हाल में मिले शिलालेख से इस बात का प्रमाण मिलता है कि वह संवत् उसी के नाम से प्रचलित था, अर्थात् अस के संवत् और विक्रम संवत् का एकीकरण * इस मत का आधार अलबेरुनी के ग्रंथ का द्वितीय भाग ( पृष्ठ ६-७ ) है ; परंतु उसका पाठ अशुद्ध है । + ज० रॉयल एशियाटिक सोसाइटी १९१४, पृ० ९८३ । + वही ; ५० ९४९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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