________________
नागरीप्रचारिणी पत्रिका
अन्येषां च महाराज क्षत्रियाणां बलीयसाम् । सर्वेषामेव राजेन्द्र प्रियं भारत भारतम् ॥ ९॥
[भीष्म पर्व श्र.६] संजय धृतराष्ट्र को संबोधन करके कहते हैं
"हे भारत, अब मैं तुमसे उस भारतवर्ष का बखान करूँगा जो भारत देवराज इंद्र को प्यारा है, विवस्वान् के पुत्र मनु ने जिस भारत को अपना प्रियपात्र बनाया था;
हे राजन्, आदिराज वैन्य पृथु ने जिस भारत को अपना प्रेम अर्पित किया था और महात्मा राजर्षिवर्य इक्ष्वाकु की जिस भारत के लिये हार्दिक प्रीति थी।
__प्रतापी ययाति और भक्त अंबरीष, त्रिलोकविश्रत मांधाता और तेजस्वी नहुष जिस भारत को अपने हृदय में स्थान देते थे;
सम्राट मुचुकुंद और प्रौशीनर शिबि, ऋषभ ऐल और नृपति नृग जिस भारत को चाहते थे;
हे दुर्धर्ष, महाराज कुशिक और महात्मा गाधि, प्रतापी सोमक और व्रती दिलीप जिस भारत के प्रति भक्ति रखते थे, उसे मैं तुमसे कहता हूँ।
हे महाराज, अनेक बलशाली क्षत्रियों ने जिस भूमि को प्यार किया है तथा और सब भी जिस भारत को चाहते हैं
हे भरतवंश में उत्पन्न, उस भारत को मैं तुमसे कहता हूँ।" - इस भारतवंदना में जिन चक्रवर्ती राजर्षियों के नाम हैं वे भारत के इतिहास में हिमालय के ऊँचे शिखरों की भाँति सुशोभित हैं। वे लोग बिना कारण भारतवर्ष को प्यार करनेवाले न थे। इस भूमि की सभ्यता का उपकार करने के लिये उन्होंने अपने जीवन का भरपूर दान दिया। उन पुण्यात्मा राजर्षियों के विक्रम से भारत-धरित्री धन्य हुई। उनके स्थापित आदर्श भारत के चिरंतन जयस्तंभ हैं। जिस प्रकार सुमहान् हिमालय अपने द्रवित वरदानों की धाराओं से देश को सींचता है, उसी प्रकार महान् आदर्शों के वे हिमाद्रि हमारी संस्कृति को रस प्रदान करते हैं। इन महात्माओं ने आदों के नूतन पथों का निर्माण किया। उनका कीर्तन इतिहासज्ञों का धर्म है।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com