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नागरीप्रचारिणी पत्रिका,
. विक्रमांक
वर्ष ४८-अंक १-४
[नवीन संस्करण]
वैशाख-माघ २०००
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भारत-वंदना
[महाभारत से ] . अथर्ववेद के पृथिवीसक्त से प्रारंभ कर देश के स्तुति-गान के कई उदाहरण हमारे साहित्य में प्राप्त होते हैं। उनमें से महाभारत के भीष्मपर्व की भारत-वंदना भावों की दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट है। भीष्मपर्व में जो भारत का भौगोलिक भुवनकोष दिया है, यह प्रशस्ति उसकी सुंदर काव्यमयी भूमिका है। इसके श्लोकों में प्राचीन वैदिक छंदों की ध्वनि सुनाई पड़ती है।
अत्र ते कीर्तयिष्यामि वर्षे भारत भारतम् । प्रियमिन्द्रस्य देवस्य मनोवैवस्वतस्य च ॥५॥ पृथोस्तु राजन्वैन्यस्य तथेक्ष्वाकोर्महात्मनः । । ययातेरम्बरीषस्य मान्धातुर्नहुषस्य च ॥६॥ तथैव मुचुकुन्दस्य शिबेरौशीनरस्य च । ऋषभस्य तथैलस्य नृगस्य नृपतेस्तथा ॥ ७ ॥ कुशिकस्य च दुर्धर्ष गाधेश्चैव महात्मनः । सामकस्य च दुर्धर्ष दिलीपस्य तथैव च ॥८॥
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