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________________ पृथिवीसूक्त-एक अध्ययन देते हैं। जो हिमालय इस अर्णव के नीचे छिपा था, उसे हम अपनी भाषा में पाथोधि हिमालय ( =टेथिस हिमालय ) कह सकते हैं। जब से पाथोधि हिमालय का जन्म हुआ, तभी से भारत का वर्तमान रूप या ठाट स्थिर हुआ। पाथोधि हिमालय और कैलाश के जन्म की कथा और चट्टानों के ऊपर-नीचे जमे हुए परतों को खोलकर इन शैल-सम्राटों के दीर्घ आयुष्य और इतिहास का अध्ययन जिस प्रकार पश्चिमी विज्ञान में हुआ है, उसी प्रकार इस शिलीभूत पुरातत्व के रहस्य का उद्घाटन हमारे देशवासियों को भी करना आवश्यक है। हिमालय के दुर्धर्ष गंड-शैलों को चीरकर यमुना, जाह्नवी, भागीरथी, मंदाकिनी और अलकनंदा ने केदारखंड में, तथा सरयू-काली-कर्णाली ने मानसखंड में करोड़ों वर्षों के परिश्रम से पर्वतों के दले हुए गंगलादों को पीस पीसकर महीन किया है। उन नदियों के विक्रम के वार्षिक ताने-बाने से यह हमारा विस्तृत समतल प्रदेश अस्तित्व में आया है। विक्रम के द्वारा ही मातृभूमि के हृदयस्थानीय मध्यदेश को पराक्रमशालिनी गंगा ने जन्म दिया है । इसके लिये गंगा को जितना भी पवित्र और मगल्य कहा जाय कम है। कवि देखता है कि अश्मा और पांसु के पारस्परिक संप्रथन से यह भूमि संधृत हुई है (भूमिः सधृता धृता, २६)। चित्र-विचित्र शिलाओं से निर्मित भूगे, काली और लाल रंग की मिट्टी पृथिवी के विश्वरूप की परिचायक है (बभ्रु कृष्णां रोहिणी विश्वरूपां ध्रुवां भूमिम् , ११)। यही मिट्टी वृक्ष, वनस्पति, ओषधियों को उत्पन्न करती है। इसी से पशुओं और मनुष्यों के लिये अन्न उत्पन्न होता है। मातृभूमि की इस मिट्टी में अद्भुत रसायन है। पृथिवी से उत्पन्न जो गंध है, वही राष्ट्रीय विशेषता है, और पृथिवी से जन्म लेनेवाले समस्त चराचर में पाई जाती है। मिट्टी और जल से बनी हुई पृथिवी में प्राण की अपरिमित शक्ति है। इसी लिये जिस वस्तु का और विचार का संबंध भूमि से हो जाता है वही नवजीवन प्राप्त करता है। ___ हमारे देश में ऊँचे पर्वत और उनपर जमी हुई हिमराशि है, यहाँ प्रचंड वेग से वायु चलती हुई उन्मुक्त वृष्टि लाती है। कवि को यह देखकर प्रसन्नता होती है कि अपने उपयुक्त समय पर धूल को उड़ाती हुई और पेड़ों को उखाड़ती हुई मातरिश्वा नामक आँधी एक ओर से दूसरी ओर को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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