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________________ .गुप्त-युग में मध्यदेश का कलात्मक चित्रण . ४५ "सब देश तो हमने देखे और सुने हैं, पर मध्यदेश नहीं देखा। हे माणव, कैसा वह मध्यदेश है ?" उसने उत्तर दिया मध्यदेशो भवंतो देशानामयः । इत्तुशालिगोमहिषीसंपन्नो भैतुकशतकलिलो दस्युजनविवर्जित आर्यजनाकीर्णो विद्वज्जननिषेवितः। यत्र नदी गंगा पुण्या मंगल्या शुचिशौचेयसंमता, उभयतः कूलान्यभिष्यंदयमामा प्रावहति । अष्टादशवक्रोनाम ऋषीणामग्रपदः । यत्र ऋषयः तपश्चर्यया स्वशरीरं स्वर्ग कामयमानाः । 'हे मित्रो, मध्यदेश सब देशों में अप्रस्थानीय है। 'वह ईख और धान के खेतों से संपन्न तथा गोधन और भैंसों से भरा-पुरा है। उसमें अनेक भिक्षुओं के समूह विचरते हैं। वहाँ दस्युओं का नाम नहीं, सर्वत्र आर्यजन विद्यमान हैं, और विद्वज्जन निवास करते हैं। 'जहां अपने दोनों तटों के जनपदों को सींचती हुई मंगलकारिणी, पवित्र, समस्त पावन वस्तुओं में सम्मान्य गंगा नदी बहती है, वह मध्यदेश है; जहाँ के प्रसिद्ध अष्टावक्र ऋषि समस्त ऋषियों में अग्रस्थानीय हुए हैं। - 'जहाँ तपश्चरण के प्रति ऋषियों में इतना उत्साह था कि वे इसी शरीर से स्वर्ग प्राप्त कर लेना चाहते थे, वह मध्यदेश है।' . मध्यदेश के इस तत्कालीन रोचनात्मक वर्णन में गंगा का इस भूमि के साथ विशेष संबंध बताया गया है, मानो उस समय गंगा इस प्रदेश को व्यक्तः करने का एक प्रतीक बन गई थी। दोनों के इस पारस्परिक संबंध के आधार पर उदयगिरि की गुफा में मध्यदेश का एक विलक्षण भौगोलिक चित्रण किया गया है। यह उत्तम शिल्प-कृति मध्यभारत की उदयगिरि गुफा की विशाल वराहमूर्ति के पार्श्व में अंकित हैं। इसमें गंगा और यमुना के अवतरण, प्रयागराज में उनके संगम और सिधु- सम्मिलन की परिभाषा के द्वारा मध्यदेश का मूर्त रूप खड़ा किया गया है। इस दृश्य का जो रेखाचित्र यहाँ प्रकाशित है, उसमें दाहिनी ओर यमुना की धारा और बाई ओर गंगा की धारा है। ऊपर बीच में एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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