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________________ २१ जिसने जीवन में किसो विष्णु का विक्रम विष्णु के पराक्रमों का गान प्रजायों का धर्म है। प्रकार का भी विक्रम किया है, उसके विक्रम के श्रमदान को कहना एक पवित्र धर्म है। विष्णु ने पार्थिव लोकों को अपने विक्रम के सूत्र से नापा । ज्ञान और कर्म के जो प्रदेश पहले अनधिकृत थे, वे विक्रम के द्वारा मनुष्यों के अधिकार क्षेत्र में आ जाते हैं, यही विष्णु का भू-मापन कर्म है। प्रत्येक समाज में एक 'उत्तर सधस्थ' या सर्वोच्च एकता का स्थान रहता है, जिस धरातल पर सारे व्यक्तिगत और सामाजिक तथा राष्ट्रीय स्वार्थ और धर्म मिलकर एक हो जाते हैं। वह सधस्थ केवल विक्रम के द्वारा ही प्राप्त होता है । विक्रम की भावना बलवती होकर अपने साथ ऐक्य गुण का आवाहन करती है। २ - ' वीर्य के कारण विष्णु की स्तुति की जाती है । वह भयंकर गिरिस्थ सिंह की तरह है | उसके लंबे तीन पैरों में सारे लोक बसते हैं।' विष्णु का महान् पराक्रम जन-समुदाय को उसके स्तुति गान के लिये बाधित करता है । विष्णु के विक्रम की स्तुति कोई निस्सत्त्व कल्पना नहीं है । वह शक्ति का उचित सम्मान और अभिनंदन है जिसका करना प्रजाओं का स्वाभाविक धर्म है । जिस प्रकार पर्वत की दुर्गम घाटियों में झपटनेवाले भयंकर सिंह के पराक्रम को प्रशंसा करने के लिये हम मजबूर होते हैं, उसी प्रकार विष्णु के यश का कीर्तन हमें करना पड़ता है। विष्णु अपना चरण उठाकर जहाँ तक विस्तृत लोक को नाप देता है, वहीं तक और सब की इयत्ता या मर्यादा रहती है । ३- 'यह स्तुति गान ( मन्म ) विष्णु के बल से पुष्ट करे । वह विष्णु पुरुषों में वृषभ के समान शीघ्रगामी और पर्वत के शिखर जैसी ऊंचाई पर स्थित है। उसने इस लंबे चौड़े निवास स्थान ( सधस्थ ) को तीन पैरों से नाप डाला ।" at यशस्कर-माद (मन्म ) प्रजाओं के कंठ से उठता है, वह 'शूष' या बल बनकर विष्णु को प्राप्त होता है। विक्रम का गान नया शक्ति-स चार करने की प्रक्रिया है । जनता के ऐतिहासिक पराक्रम का वर्णन तथा उसके साहित्य, कला और संस्कृति का बखान उसको अपने स्वरूप का ज्ञान कराने के लिये आवश्यक है । मातृभूमि ही वह सघस्य है जहाँ सब एक साथ रहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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