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________________ २३० - नागरीप्रचारिणी पत्रिका द्वीप हैं। इनमें से मुख्य मलाया प्रायद्वीप, सुमात्रा, जावा, बालि, बोर्नियो और सॅलिबस हैं। प्राचीन समय में बर्मा से लेकर मलाया प्रायद्वीप तक के समस्त प्रदेश को सुवर्णभूमि और जावा, सुमात्रा आदि द्वीपों को सुवर्णद्वीप कहते थे। सुवर्णद्वीप में भारतीयों के प्रवेश की सर्वप्रथम तिथि का पता लगाना अत्यंत दुष्कर है, परंतु इतना निश्चित है कि वे बहुत प्राचीन काल से ही सुवर्णद्वीप से परिचित थे। कथासरित्सागर, कथाकोष और जातकप्रथों में सुवर्णद्वीप जानेवाले अनेक यात्रियों की कथाएँ संगृहीत हैं। मलाया प्रायद्वीप-हिंदचीन के दक्षिण में पूर्वसमुद्र तथा चीनी समुद्र को विभक्त करनेवाली पृथ्वी की पतली सी पट्टी को मलाया प्रायद्वीप कहा जाता है। चीनी विवरणों तथा प्राचीन लेखों को पढ़ने से ज्ञात होता है कि ईसा की दूसरी शताब्दि तक भारतीय लोग निश्चित रूप से मलाया प्रायद्वीप में बस चुके थे। उनके अनेक राज्य स्थापित हो चुके थे और उन्होंने चीनी सम्राट के साथ राजनीतिक संबंध भी स्थापित कर लिया था। सुमात्रा-भारत से पूर्वीय द्वीपसमूह की ओर जाने पर सबसे पहले जो द्वीप पड़ता है, वह सुमात्रा है। यह सुवर्णद्वीप नाम से कहे जानेवाले द्वीपों में सबसे बड़ा है। सुमात्रा का प्राचीन नाम श्रीविजय है। चीनी विवरणों के अनुसार ४थी शताब्दि तक भारतीय लोग निश्चित रूप से सुमात्रा में श्रावासित हो चुके थे। ७वीं शताब्दि तक यह पर्याप्त शक्तिशाली बन गया था। उस समय वहाँ बौद्धधर्म का प्राबल्य था । अनेक यात्री बौद्धधर्म का ज्ञान प्राप्त करने सुमात्रा जाने लगे थे। सुमात्रा और भारत में आवागमन भी पर्याप्त होने लगा था। जावा-सुमात्रा से और अधिक पूर्व में जाने पर एक द्वीप आता है जिसे जाबा कहते हैं। यह सुंद नाम से कहे जानेवाले द्वीपों में सबसे बड़ा है। इसका प्राचीन नाम यवद्वीप है। जावा शब्द यव का ही अपभूश है। अत्यंत प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य में यवद्वीप का प्रयोग होता रहा है। रामायण में 'यवद्वीपं सप्तराज्योपशोभितं' करके इसे स्मरण किया गया है। प्राचीन अनुश्रतियों के अनुसार ७४ ई० में सौराष्ट्र के राजा प्रभुजयभय के प्रधान मंत्री अजिशक ने पहले पहल जावा में पदार्पण किया। इसके एक ही वर्ष उपरांत ७५ ई० में कुछ साहसी लोग कलिंग से रवाना हुए। यद्यपि पहले पहल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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