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________________ पानपर्व का एक अध्ययन १७९ निकाला गया हो । जो हो, संभवतः खश और दूसरी जातियों के हाथों से गुजरकर साना भारत में आता था । खश इत्यादि के अतिरिक्त जंगली जातियाँ अन्य वस्तुएँ चमरी (४८, ७) इत्यादि लाई । आज भी तिब्बत से हिंदुस्तान के बाजारों में चमरी आकर बिकती है। साथ ही साथ वे ( ४८,५ ) हिमालय के पुष्पों से जनित मधु तथा पुष्पों से प्रथित उत्तरकुरु देश ( ४८,६ ) की मालाएँ और उत्तर कैलाश की वनस्पतियाँ भी लाए । महाभारत-काल में उत्तरकुरु वैदिक साहित्य में ऐसी बात नहीं । पार उनकी स्थिति मानी गई है। के उत्तर में रहा होगा ( वैदिक इं०, कल्पना क्षेत्र की एक वस्तु रह गया है पर ऐतरेय ब्राह्मण (८,१४ ) में हिमालय के जिम्मर के अनुसार उत्तरकुरु काश्मोर जिल्द १, पृ० ८४) । किरात - ( सभा० । ४८८ ) किरात की व्युत्पत्ति किराति और किरोति शब्द से है, जिसके माने कि त देश के रहनेवाले हैं। किरत देश नेपाल में दूद कोसी और कर्की नदियों के बीच का प्रदेश है। शायद इन्हीं किरातों को भीम ने अपने पूर्व दिग्विजय में हराया था । उपायनपर्व (४८, ८) में किरातों के देश का अच्छा वर्णन है। इसके अनुसार किरात हिमालय के पूर्वी ढाल पर तथा समुद्र के किनारे वारिश देश के पास रहते थे। इससे यह पता चलता है कि वे नेपाल में तथा बंगाल और आसाम में रहते थे । की पहचान आधुनिक बारिसाल सब-डिवीजन से हो सकती है । किरात लोहित तथा ब्रह्मपुत्र के किनारों पर भी रहते थे । तिब्बत बर्मी जाति के लोगों का इससे सुदर भौगोलिक विवरण और नहीं मिल सकता । वारिश किरात चमड़े पहनते थे, तथा जंगल के फल-मूल पर गुजारा करते थे ( सभा० ४८, ८ ) । वे अपने साथ स्वदेश की उपज युधिष्ठिर की भेंट क लाए, जिसमें चमड़े, रत्न, सुवर्ण, चंदन, अगरु, कालीर इत्यादि सुगंधित वस्तुएँ थीं (४८९) । सुगंधित द्रव्यों के लिये आसाम बहुत दिनों से प्रसिद्ध था। इन वस्तुओं का वर्णन कौटिल्य के अर्थशास्त्र में दिया है (देखो मोतीचंद -- कास्मेटिक्स इन एंशियेट इंडिया, जर्नल अफ ओ० आर्ट, १९४०, पृ० ८३-८८ ) । सोना और रत्न निचले बर्मा से आया होगा । इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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