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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका माना है (वही, पृ० ३२७, २८)। इन तंगणों का राज्य रामगंगा नदी से लेकर उपरली सरयू तक फैला हुआ था। इस संबंध में एक बात और जानने की है कि तंगण केवल यही नहीं बसते थे, बल्कि काश्मीर के पास भी। मध्य एशिया के तुंगण शायद इन्हीं के वंशज हों। परतंगण-(४८३) ऐसा जान पड़ता है कि नस्ल के हिसाब से तंगणों का संबंध परतंगणों से रहा हो। एरियन के अनाबीसिस (४, २२) में इनका कुछ वर्णन मिलता है। इसमें परै-तकनाइ (मैकक्रिडल; इन्वैजन, पृ०.५७) नामक देश का वर्णन है जिसकी स्थिति वंक्षु तथा जकसार्थ के उपरले हिस्से में थी। यह बहुत संभव है कि यही महाभारत के परतंगण रहे हों। . पिपीलिक स्वर्ण-(४८।४) खश, ज्यो, दीर्घवेणु, तंगण और परतंगण लोगों ने युधिष्ठिर को घड़ों में भरकर पिपीलिक स्वर्ण दिया। ग्रीक विद्वानों ने इस पिपीलिक स्वर्ण के बारे में विचित्र कथाएं कही हैं। हेरोडोटस ( ३,१०२,१०५) तथा मेगास्थनीज इत्यादि विद्वानों के कथन के अनुसार चिउँटियों द्वारा यह सोना जमीन से खोदा जाता था। बहुत खोज के बाद विद्वानों ने स्थिर किया कि यह सोना तिब्बत को सोने की खानों से निकाला जाता था (ई० ए०, जिल्द ४, २२५-२३२ )। वास्तव में ये चीटियों नहीं थीं, वरन् समूर पहने हुए खानों में काम करनेवाले तिब्बती मजदूर थे। इस बात को ओर भी इशारा किया गया है कि पिपीलिक स्वर्ण का नाम एक मंगोल जाति (शि रै घोल) तथा चींटो के लिये (शिरगोल ) है (डाउफर, दि साग फाडन गोल्ड प्राबेंडेन पा माइसेन, तुग पाव, नवीं जिल्द, १६०८, पृ० ४५१) । टार्न के अनुसार (पृ० १०७) पिपीलिक स्वर्ण केवल लोक-कथाओं की बात है और इसकी कल्पना केवल सोने के उद्गमस्थान से पाने के लिये की गई थी। वास्तव में यह सोना साइबेरिया से आता था। यह कहना बहुत कठिन है कि यह सोना तिब्बत से या साइबेरिया से आता था, क्योंकि दोनों पक्षों ने अपने मतों की पुष्टि के लिये काफी प्रमाण दिए हैं। महाभारत से भी इस प्रश्न पर कुछ प्रकाश-पड़ता है। युधिष्ठिर को जो सोना दिया गया वह करदों के रूप में था, जिससे पता लगता है कि वह नदियों से बालू धोकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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