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________________ १५९ उपायनपर्व का एक अध्ययन इन भिन्नताओं के देखते हुए कंबोज बिलकुल मृगमरीचिका सा मालूम होता है, जिसके पास तक हम ज्यों ज्यों पहुँचते हैं वह आगे खसकता जाता है। जयचंद्रजी ने इस प्रश्न की जाँच-पड़ताल ( 'भारतभूमि', पृ० २९७-३०५) में नए ढंग से को है और उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि बदखशॉ और पामीर के पास का हो प्रदेश प्राचीन कंबोज था। इस संबंध में यह कहना अनुचित न होगा कि सिवा प्रो. रायचौधुरी के प्रायः सबै विद्वानों ने कंबोज की स्थिति भारत के उत्तरपश्चिम में मानी है। ईसा के बाद सातवीं शताब्दि तक जैसा कि मुक्तापीड़ ललितादित्य की चढ़ाई से प्रकट होता है ( राजतरं०४), कबोज की स्थिति भौट्ट और दरदों के बाद है। भाट्ट बाल्टिस्तान के निवासी थे और दरद बल्लूचिस्तान के। इससे प्रकट है कि क बोजों का स्थान बलख बदख्शों और पामीर में होगा। पेतवत्थु की टीका परमार्थदीपनी में कंबोज के साथ द्वारका का नाम आया है। यह काठियावाड़ की द्वारका नहीं। यह बदख्शों में स्थित दरवाज देश का रूपांतर मात्र है। प्रो० सिलवाँ लेवी के अनुसार टालमी (६, ११,६ ) का तांबिजाई जिसकी स्थिति वंच के दक्खिन में थी, केवल कंबोज शब्द का रूपांतर है (ज० ए० १९२३, पृ०५४)। अल ईद्रसी के एकासदर्भ से कंबोज की स्थिति पर काफी प्रकाश पड़ता है। बदख्शों की सुदरताएं बखानने के बाद वह कहता है कि बदख्शों की स्थिति कन्नौज के बगल में है (जिप्रोग्रफी द अल इद्रसी, अनु० जाबर्ट, भाग १, पृ० ४७८-७९) । इसमें संदेह नहीं कि अल इद्रसी का कन्नौज हमारा कंबोज है। लगता है कि इद्रसो के समय में कंबाजों के देश की सीमा बहुत घट गई थी, क्योंकि उसके भूगोल में बदख्शा एक अलग राज्य है। अब प्रश्न यह है कि इसी के कंबोज की स्थिति कहाँ थीं। संभवत: वह काफिरस्तान का ही एक दूसरा नाम है। कबोज प्राचीन काल में आधुनिक गल्चा बोलनेवालों, जिनमें वखी, शिनी, सरीकोली, जेब्की, संग्लीची, मुंजानी, युद्गा तथा याग्नाबी थे, का प्रदेश था। इस संबंध में यह भी जानने योग्य है कि पामीर के आसपास तथा वक्षु के स्रोत के पास ही गल्चा बोलनेवाली जातियों रहती हैं। प्राचीन काल में शायद बदख्शों में भी पूर्वी ईरानी बोली जाती थी (प्रियर्सन भाषा-पड़ताल, भाग १०, पृ० ४५६)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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