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________________ १५८ নাৰীৰিী গগিন্ধা कंबोजमुड (२१११७२ ) आए हैं जिनसे पता लगता है कि शक तथा यवनों में मूंद मुड़ाने की प्रथा थी। कबोज देश के घोड़े भी साहित्य में प्रसिद्ध हैं। कंबोज के लोग युधिष्ठिर को राजसूय पर घोड़े देने आए (४७४)। इनकी सख्या ३०० थी और वे कल्माष तथा तित्तिर नस्ल के थे। इनका भोजन पीलुष तथा इंगुद के फल थे। जातकों में भी कबोज के घोड़े ( कबाजका अस्सतर, जातक ४, ४६४; गाथा २४२ ) का वर्णन है। उत्तराध्ययन सूत्र (जैनसूत्र, सै० बु० ई० भा० २, ४. ) में यह कहा गया है कि कबोज के अच्छी तरह सीखे घोड़े सब घोड़ों से बढ़कर होते हैं और किसी प्रकार के शोरगल से वे डरते नहीं। अर्थशास्त्र (शामशास्त्रो अनु० पृ० १४८) में भी उल्लेख है। घोड़ियों के अलावा कंबोजवालों ने युधिष्ठिर को गाएँ, रथ (४७४) तथा ३०० ऊँट (४५।२०) भी दिए। उन्होंने साथ साथ भेड़ के ऊन* तथा समूर जिन पर सोने के काम बने थे तथा चित्र-विचित्र चमड़े युधिष्ठिर की सेवा में भेजे।। ऊपर के वर्णन से इस बात का पता चल गया होगा कि कंबोजवासी कोई साधारण श्रेणी के न थे। पर यह विचित्र बात है कि उनको भौगोलिक स्थिति के बारे में विद्वानों का एक मत नहीं है । लैसेन के मत से कबोज की स्थिति काशगर दक्खिन में और काफिरस्थान के पूर्व में थी। राइज डेविड्स के अनुसार कबोज प्रदेश उत्तर-पच्छिमी हिंदुस्तान में प्रसिद्ध था और द्वारका उसकी राजधानी थी। विन्सेंट स्मिथ ( इति० पृ० १८४) इसे तिब्बत और हिंदुकुश के पहाड़ों में रखते हैं। प्रो० सिलवा लेवी कंबोज और काफिरस्तान को एक ही मानते हैं (जर्नल एशि० १९२३)। प्रो० रायचौधुरी (पोलिटिकल हिस्ट्री इं० हि० स० पृ० ९४-९५) कर्णपर्व (८४,५) के एक अवतरण को लेकर कंबोज की स्थिति कश्मीर के दक्खिन या दक्खिन पूर्व में मानते हैं। * ऐडांश्चैलान्वार्षदंशान् जातरूपपरिष्कृतान् । ( ४७।३) 1 कदलीमृगमोकानि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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