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________________ उपायनवर्ष का एक अध्ययन . . १४९ नहीं हो सकता। हर्थ ने आर्शी से यू-शी की व्युत्पत्ति की है। क्लैपॉक ने यू-शी की व्युत्पत्ति एथ से को है। मैं के ने इसकी उत्पत्ति एथ या गेथ से की है, तथा बैरल हान्स्टाइन इसे गुर्शी से उत्पन्न मानते हैं (कानौ की पुस्तक, पृ० १९)। ऋषिकों के बारे में विचार प्रकट करने से पहले यह अच्छा होगा कि हम उनके प्रसार से परिचित हो लें, तथा यदि संभव हो तो महाभारत में जो ऋषिकों के विषय में मिलता है, उससे उसका मिलान करें। इतिहास में यू-शी लोगों का प्रादुर्भाव पहले-पहल उत्तर-पच्छिमो चीन के कांसू प्रदेश में मिलता है। यू-शी तथा ह्यग्न में, जो बाद के हूणों के पूर्वपुरुष थे, कशमकश शुरू हुई जिसके फल-स्वरूप १७६ या. १७४ ई० पू० में यू-शी लोगों को हार माननी पड़ी और वे कांसू से पच्छिम को ओर एक लंबी मंजिल पर चल पड़े। उनका एक भाग, जिसे चीनी लेखक सियाव-योशो या छोटे यू-शी के नाम से पुकारते थे, घबड़ाकर दक्षिण की ओर बढ़ गया तथा तारीम-काँठे में बसा ( ज० अमेरिकन, ओरि० सो० १९१७, पृ. ९७)। बाकी यू-शी आगे बढ़े। घग्नू बराबर उनका पीछा करते गए। १६० ई० पू० के करीब उन्होंने पच्छिम बढ़ते हुए इसिकुल झील के किनारे साइमन लोगों को हराया। फलतः साइमन दक्षिण की ओर भाग खड़े हुए। ठीक इसी के बाद यू-शी लोगों को फिर ह्य ग्नू से हारकर भागना पड़ा। १६० से १२८ ई० पू० तक यू शी के इतिहास का कोई पता नहीं। १४१ से १२८ ई० पू० के बीच में उन्होंने जक्सार्थ नदी को फर्गना के पास पार किया और बाल्हीक के ग्रीक साम्राज्य का अंत कर दिया। अब हमें यू-शी द्वारा बाल्हीक के विजय पर ध्यान देना चाहिए। पुराने ऐतिहासिकों का मत रहा है कि बाल्हीक का पतन शकों द्वारा हुआ। यह बात समझ में नहीं आतो। क्योंकि चांग-किएन ने साफ लिखा है कि बाल्हीक के पतन के कारण ता-यू-शी थे। टान के अनुसार (टान, दि ग्रीक्स इन बैक्ट्रिया एंड इंडिया, पृ० २८३) यह भूल स्त्राबो ( १९१५,११ ) के एक अवतरण से हुई है, जिसमें शकों के द्वारा बख्त्र जीत जाने का उल्लेख है। पर सौंदर्भ की जाँच करने से विदित होगा कि शकों की जिस विजय का इसमें उल्लेख है वह हखमानी युग में ई० पू० ७वी श० में हुई होगी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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