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________________ १४६ नागरीप्रचारिणी पत्रिका छोटे तीथों ही की तरफ आकृष्ट किया गया है। दूसरे की तरफ से खिंचाव की यह प्रवृत्ति महाभारत, पुराणों और स्मृतियों में अच्छी तरह देख पड़ती है । इस प्रवृत्ति ने ही उस घृणात्मक भाव को जन्म दिया जिसके द्वारा देश नाना जातियों तथा छोटे छोटे जनपदों में विभक्त हुआ और समाज की संगठन-शक्ति ढीली होकर बिखरने लगी। जैनों तथा बौद्धों के प्रादुर्भाव से ब्राह्मणों को यह प्रवृत्ति घटी नहीं बल्कि बढ़ी। इनसे बचने के लिये ब्राह्मणों ने और भी कठिन सामाजिक नियम बनाया । पर इन सब का नतीजा सिवा संघटित समाज को ' छिन्न-भिन्न करने के और कुछ न हुआ । महाभारत के भूगोल का विशेष अंग बहुत से दिग्विजय हैं। दिग्विजय पर्व में अर्जुन, भीम, सहदेव तथा नकुल के दिग्विजयों के वर्णन हैं । इन दिग्विजयों के संबंध में कुछ बातें उल्लेखनीय हैं। भौगोलिक दृष्टिकोण से इन दिग्विजयों का काफी महत्त्व है। इनसे न केवल नगरों इत्यादि के वर्णन का पता चलता है बल्कि बड़े बड़े राजमार्गों का भी पता चलता है। इनसे यह भी पता चलता है कि तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं को महाभारत के पात्रों पर घटा दिया गया है। इन दिग्विजयों से यह नहीं समझना चाहिए कि भारतीय राजा लोग एक ही समय इतनी लंबी लंबी चढ़ाइयाँ करते थे । सच तो यह है कि छोटीमोटी चढ़ाइयों को एक सूत्र में प्रथन करके इन दिग्विजयों का सूत्रपात होता है । सभापर्व में पश्चिमोत्तर सोमाप्रांत, पूर्वी अफगानिस्तान तथा पंजाब के स्थानों का वर्णन है। कभी कभी भौगोलिक दिशाओं का इंगन है लेकिन सर्वदा नहीं । भाग्यवश इन भौगोलिक तालिकाओं में एक तरह का क्रम पाया जाता है जिससे उन स्थानों की पहचान में बहुत मदद मिलती है। भिन्न भिन्न देशों की पैदावारों से भी उनकी पहचान की जा सकती है । महाभारत के भूगोल से एक खास बात यह प्रकट होती है कि भारतवर्ष की सीमा उस समय पूर्वी अफगानिस्तान तथा वंच के पास के प्रदेशों तक थी । यदि इस बात को हम ध्यान में रखेंगे तो बहुत सी कठिनाइयाँ हल हो सकेंगी और महाभारत की बहुत सी नदियाँ, नगर, पहाड़ इत्यादि आधुनिक भारतवर्ष की सीमा के ही अंदर न खोजने पड़ेंगे। ई० पू० दूसरी शताब्दि में भारतीय संस्कृति भारतवर्ष से बहुत दूर अफगानिस्तान तथा वंक्षु प्रदेश तक फैल गई थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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