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________________ aritas के कीलाक्षर लेखों में वैदिक देवता १४९ परिस्थिति का एक सच्चा प्रतिबिंब अंकित था। इसकी वैज्ञानिक और सत्यात्मक परख के लिये हमें प्राचीन ईरान, तूरान और सुमेर से लेकर बाबेरू (बेबीलोन) तथा शूषा ( आधुनिक सूसा ) के काल तक के समस्त इतिहास और प्राचीन भूगोल का सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिए । इन देशों में प्राचीन भूगोल के जो नाम हों, उनकी पहचान करके हमारा अपना इतिहास भी बहुत कुछ लाभान्वित हो सकता है। एक बात विशेष है। मोहंजोदड़ो और हरप्पा ( प्राचीन हरियूपा) की खुदाई ने भारतीय पुरातत्व को यह प्रतिष्ठा दो है कि वह वरुण की पच्छिमी दिशा के पाँच हजार वर्ष बूढ़े पुरातत्व से आयु में बराबरी की टक्कर ले सके और कंधे से कंधा मिलाकर चल सके। विक्रम से तीन सहस्राब्दी पूर्व सिधु के तट पर फूलने-फलनेवाली यह सभ्यता म्लेच्छ जाति, असुर जाति एवं आर्य जाति की सभ्यताओं से किस प्रकार संबधित थी, इस रहस्य का उद्घाटन भावी पुरातत्त्ववेत्ताओं को करना है। इस अनुसंधान-कार्य में भारतीय पुरातत्ववेत्ताओं को भी भाग लेना आवश्यक है। यदि इस प्रश्न से लोहा लेने के लिये भारतीय विद्वान् ऊँचे नहीं उठते तो उनका पांडित्य सौंसार में बौनों की तरह अपमानित रह जायगा । इस प्रश्न को एक अन्य दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है । आर्य जाति का सौंसार की सभ्यता पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है । सभ्य संसार की महान् जातियाँ और भाषाएँ आर्य परिवार से संबंधित हैं। आयों के साहित्य, धर्म और भाषा का साक्षात् ब्रह्मदायाद भारतवर्ष को प्राप्त हुआ है और उसे ज्ञान की पैतृक स ंपत्ति को ठीक प्रकार से समझने के लिये प्रयत्न करना है । आर्य जाति के जन्म, अभ्युदय और प्रसार की रोमांचकारी कथा ar फिर से सत्य की भूमि पर स्थापित करने के लिये भी साथ साथ पश्चिमी क्षेत्र में उपलब्ध साहित्य अध्ययन की अत्यंत आवश्यकता है। ईराक और प्राप्त कीलाक्षर लेखों के भंडार पश्चिमी देशों को 1 श्रार्य साहित्य के और सामग्री के तुलनात्मक तुर्की के अनेक स्थानों से भी अब तक प्राप्त होते रहे हैं 1 उस सामग्री और उस साहित्य में यहाँ के पुराविदों को भी अपनी रुचि बढ़ानी चाहिए । इस कार्य के सौंपादन के लिये एक केंद्रीय पुरातत्व- मंदिर की स्थापना की शीघ्र से शीघ्र आवश्यकता है I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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