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________________ विक्रम संवत् और विक्रमादित्य अवरुद्ध हुए। नासिक के लेख में भवति और आकर को गौतमीपुत्र के राज्य के अंतर्गत लिखा गया है। मालवों के साथ उसकी राजनीतिक संधि को ध्यान में रखते हुए.इसमें कुछ आश्चर्य नहीं मालूम होता। शकों की पराजय के बाद मालवगण ने स्वतंत्रता का अनुभव किया। हमारी सम्मति में स्वतंत्रता को यह स्थापना ही मालवगण को स्थिति' थी जिसका मालव-कृत सवत् के लेखों में कई बार उल्लेख है। पहली बार मालवगण अवति-पाकर में प्रतिष्ठित हुआ और तब से वह भूप्रदेश मालव कहा जाने लगा। गौतमीपुत्र शातकर्णि के लेख में कहा गया कि उसने अनेक विशाल श्रानंदोत्सवों का आयोजन किया (क्षण-प्रोत्सव-समाजकारकस्य )। दिग्विजय के उपलक्ष्य में ऐसा करना स्वाभाविक था। मालवों ने भी इस विजयोल्लास के आनद में भाग लिया होगा। शकों के हुकार से मालवगण भयभीत होकर तितर बितर हो गया था 'ते च मालया प्रनादेनैव अपयाता। (नासिक लेख) वही मालव विदेशियों का पराजय और स्वराज्य की स्थापना के बाद स्वदेश में पुनः संघीभूत हुए एवं उनका गण सुप्रतिष्ठित हुआ। यही घटना 'मालवगणस्थिति' थी। उस स्थिति के वर्ष से हो कृतसशक कालगणना का प्रारभ मालवों में होने लगा। कृत का अर्थ कृत शब्द के कई अर्थ सुझाए गए हैं-(१) किया गया; (२) ज्योतिष का एक शब्द जो चार से विभक्त हो जानेवाले वर्ष के लिये प्रयुक्त होता है। डा. अल्तेकर ने अपने लेख में कृत नाम के मालवगण-प्रधान या सेनापति की कल्पना की है, किंतु वे स्वयं मानते हैं, कि इसका. कोई आधार नहीं है। हमारी सम्मति में कूत का अर्थ सतयुग या स्वर्णयुग लेना चाहिए।' इस अर्थ का समर्थन प्राचीन वैदिक परंपरा से होता है। ऐतरेय ब्राह्मण के चरैवेति गान में कृतादि परिभाषाओं की व्याख्या करते हुए लिखा है कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः । त्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरन् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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