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________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका सामथ्ये सति निन्दिता प्रविहिता नैवाग्रजे करता बन्धुस्त्रीगमनादिभिः कुचरितैरावर्जितं नायशः । शोधशौचपराङमुखं न च भिया पैशाच्यभङ्गीकृतं त्यागेनासम साहसैश्च भुवने यः साहसाङ्को ऽभवत् ॥*अर्थात् राष्ट्रकूट गोविंद चतुर्थ ने साहसांक के दुर्गुण तो नहीं अपनाए, परंतु त्याग और असम साहस से वह संसार में साहसांक प्रसिद्ध हो गया । ११३ प्रति क्रूर कर्म । इस श्लोक में यदि मूल साहसांक के दोष न गिनाए गए होते, तो कोई कह सकता था कि गोनिद चतुर्थ ही साहसांक था, परतु दैवयोग से वे दोष यहाँ स्फुट रूप में लिखे गए हैं। वे दोष हैं- ज्येष्ठ भ्राता ज्येष्ठ भ्राता की स्त्री के साथ अपना विवाह कर लेना । भय से उन्मत्त बनना अथवा पैशाच्य अंगीकार करना। इन दोषों के साथ त्याग और असम साहस के दो गुण भी वर्णन किए गए हैं 1. अगले लेख से यह स्पष्ट हो जायगा कि जिस साहसांक के गुण-दोष. उपयुक ताम्रपत्र पर अंकित किए गए थे, वह साहसांक गुप्त-कुल का सुप्रसिद्ध महाराज चंद्रगुप्त द्वितीय हो था । १६ -- इन्हीं घटनाओं को पुष्ट करनेवाला शक ७६५ ( संवत् ६३० ) का निम्नलिखित लेख है हत्वा भ्रातरमेव राज्यमहरद् देवीं च दीनस्ततो अर्थात् उस राजा ने भाई को मारकर लक्षं कोटिमलेखयन् किल कलौ दाता स गुप्तान्वयः । राज्य हरा और उसकी देवी का कोटि लिखा दिया । कलि में भी ले लिया । लाख दान के स्थान पर उसने वह (विलक्षण ) दाता गुप्तवंशीय हुआ । १७ - साहसांक चंद्रगुप्त विक्रम संबधी जो घटनाएँ पुरातन लेखों के आधार पर ऊपर लिखी गई हैं, उनका सविस्तर वर्णन कवि विशाखदेव - प्रणीत * एपिग्राफिया इंडिका, भाग ७, खंभात के ताम्रपत्र, पृ० ३८ । + एपिमाफिया इंडिका, भाग, १८, संजान ताम्रपत्र, पृ० २४८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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