SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नागरीप्रचारिणी पत्रिका यहाँ कवि ने साहसांक पद से चालुक्य विक्रम का संबोधन किया है। मुज तो स्पष्ट ही नवसाहसांक भी कहा गया है। अतः स्पष्ट है कि उससे पहले एक मूल साहसांक हो चुका था । चालुक्य विक्रमादित्य को उसके कवि बिल्हण ने विक्रमादित्य नाम के कारण ही साहसांक कहा । ११४ परलोकगत श्री राखालदास वंद्योपाध्याय की भूल ११ - एपिमाफिया इ ंडिका भाग १४ के संख्या १० के लेख की विवेचना में श्री राखालदास से एक भूल हुई है। वे समझते हैं कि सेन व श के राजा विजय सेन ने एक साहसांक को पराजित किया . इन् व ७, व्हेयर इट इज स्टेटेड दैट विजयसेन डिफीटेड ए किंग नेम्ड साहसांक' । -- इस सातवें श्लोक का पाठ निम्नलिखित हैतस्मादभूद् अखिलपार्थिव चक्रवर्ती निर्व्याज- विक्रम - तिरस्कृत- साहसाङ्कः । दिकपालचक्र - पुटभेदन- गीत कीर्तिः पृथ्वीपतिविजयसेन पदप्रकाशः ॥ ७ ॥ * इसका सीधा अर्थ यही है- जिस विजयसेन ने अपने निर्व्याज-विक्रम से साहसांक को भी तिरस्कृत किया, अथवा जो साहसांक से भी बढ़ गया । तो खाल जी ने भी यही किया है-हू हैड चाटशोन साहसांक, ' परतु माद्ध निकाला है। इसका अभिप्राय इतना ही है कि उक्त शिलालेख के लिखनेवाले के मत में विजयसेन साहसांक से भी बड़ा राजा था । यह साहसांक पुरातन साहसांक ही था । विजयसेन के काल का कोई साहसांक नहीं था । साहसांक नाम का एक ही व्यक्ति था पूर्वो जितने भी प्रमाणों में साहसांक शब्द आया है, उनके देखने से यह निश्चय हो जाता है कि भारतीय इतिहास में साहसांक नाम का एक ही * एपिग्राफिया इंडिका, भाग १४, पृ० १५९, १६० १ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy