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________________ साहसांक विक्रम और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की एकता ११३ .. यह लेख रामदासकृत सेतुबंधटीका के अंत में मिलता है। रामदास जयपुर राज्यांतर्गत वोली नगराधीश था। वह जलालुद्दीन अकबर महाराज के काल में हुआ। उसने विक्रम संवत् के लिये ही साहसांक संवत् का प्रयोग किया है। यही बात पूर्वोद्धृत क, ख, प्रमाणों से भी स्पष्ट हो जाती है। कनिंघम का भी यही मत था कि "क" और "ख" में वर्णित शिलालेखों में साहसांक वत्सर से विक्रम संवत् का ही प्रहण होता है। अखएव हारितोषर पीतांबर, रत्नेश्वर मिश्र, शाङ्गधर, मेरुतुग, वररुचि और रामदास के लेखों से तथा शिलालेखों के प्रमाणों से यह बात निर्विवाद ठहरती है कि साहसांक, विक्रमादित्य और विक्रमार्क एक ही व्यक्ति के नाम थे । संस्कृत वारमय में विक्रम-साहसांक के उत्तर-कालीन अन्य साहसांक १०-संस्कृत साहित्य के पाठ से पता लगता है कि विक्रम-साहमांक के उत्तरवर्ती कई अन्य राजाओं ने भी साहसांक की उपाधि धारण की थी। (क) भोजराज के पिता महाराज मुज (सवत् १०११-१०५१) के नाम थे-वाक्पतिराज प्रथम, साहसांक, सिंधुराज, उत्पलराज इत्यादि। (ख) चालुक्य विक्रमादित्य भी साहसांक ,कहाया। उसका कवि बिल्हण लिखता है. श्रीविक्रमादित्यमथावलोक्य स चिन्तयामास नपः कदाचितू। अलङ्करोत्यद्भुतसाहसाङ्कः सिंहासनं चेदयमेकवीरः ।। विक्रमांकचरित ३२२६,२७ इन पंक्तियों में चालुक्य विक्रम के पिता के विचार उल्लिखित हैं। वह अपने पुत्र को विक्रमादित्य और साहसांक नामों से स्मरण करता है। बिल्हण ने फिर लिखा हैत्वद्भिया गिरिगुहाश्रये स्थिताः साहसांक गलितत्रपा नेपाः। विक्रमांकचरित ५।४०॥ * निर्णयसागर, मुंबई का संस्करण, १९३५ ईसवी वर्ष, पृ० ५८४ । +पद्मगुप्त का साहसांकचरित । १५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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