SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विक्रम-पुष्पांजलि [ महाकवि कालिदास] अत्र प्रियकारिणं सम्भावयामो राजर्षिम् । अपना हित करनेवाले राजर्षि का आज हम सम्मान करते हैं। दिष्ट्या महेन्द्रोपकारपर्याप्तेन विक्रममहिम्ना वर्धते भवान् । __हे राजर्षि, विक्रम की महिमा के लिये हम आपका अभिनंदन + करते हैं। स्वर्ग के महान् इंद्र का भी उपकार करने में आपका विक्रम समर्थ है ; फिर पृथिवी-तल का तो कहना ही क्या है ? वयं त्वदीयं जयोदाहरणं श्रत्वा त्वामिहस्थमुपागताः। आपकी जय का बखान करनेवाले स्तुतिगानों को सुनकर हम । । आपके समीप एकत्र हुए हैं। दिष्ट्या महाराजो विजयेन वर्धते । हे महाराज, हर्ष है कि आपकी विजय की कहानी बढ़ रही है। सर्वथा कल्पशतं महाराजः पृथिवीं पालयन् भवतु । हे महान् राजन्, सैकड़ों कल्पों तक यह पृथिवी आपकी सुरक्षा । और सुशासन से सजी हुई रहे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035307
Book TitleVikram Pushpanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalidas Mahakavi
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1944
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy