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________________ ( ६३) परमेष्ठि पद में मध्य पद के. धारकम् भव गुरुदेव पूजन, वल्लभ सूरि सर्व तारकम् । निवारकम् ॥ विघ्न ( मंत्र : ) ॐ ह्रीँ श्री परम गुरुदेव परम शासन मान्य, सूरि सार्वभौम जं० यु० प्र० भट्टारक, जैनाचार्य, श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर चरणकमलेभ्यो, अक्षतं यजामहे स्वाहा ॥६॥ ॥ श्री सप्तमी नैवेद्य पूजा ॥ : दोहा : मन मोदक मधुरात्मा, परम गुरु महाराय | नैवेद्य पूजो भाव से, पावो शिव सुख दाय || जिन प्रतिमा जिन सारखी, वर्णी सूत्र मकार । गुरु वल्लभ वर्णन करे, प्रभु पूजा अधिकार । ज्ञाता अंगे द्रौपदी, अम्बङ उववाई मांय | सूरिया पूजा करी, राय पषेणी बताय ॥ भगवती सूत्र बखाणियो, पूजा का अधिकार । पूजी तुंगिया नगर में, श्रावक भक्ति मंकार ॥ विजय देवता पूजता, जीवाभिगम मांय । तिस कारण पूजो भवि, जिन प्रतिमा हित दाय || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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