SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधु पूजे भाव से, जो सुविहित अणगार । श्रावक द्रव्य भाव से, निज शक्ति अनुसार ।। अठाई मोच्छब अति, गाँव शहर सब थाय । पूजन भक्ति भाव से, नर नारी फल पाय ।। जौहरी भोगीलालजी, अहमदाबाद निवास । पूजा श्री ब्रह्मचर्य की, प्रेरक बनते खास ।। राग मधुर पद काव्य में, सद्गुरु रचनाकार । ब्रह्मचर्य गुणगान का, कीना सविस्तार ।। गावे वल्लभ सद्गुरु, पर आतम कल्याण । तीन सुधारो प्रेम से खान पान पहिरान ॥ (तर्ज कव्वाली चाल-मुनि परमेष्ठि पद पूजन) वल्लभ गुरूदेव का पूजन करो भवि जीव शुभ भावे॥ अ परम पंडित गीतारथ है, आगम का रहस्य समझावे । मृदु भाषी प्रखर वक्ता, स्याद्वाद् महत्व बतलावे ॥१॥ एम० ए० शास्त्री राज पृथ्वी, जैन तेरी शरण पावे । दिया आशीष सद्गुरू ने, पंजाबी नाम चमकावे ॥२॥ पशु पक्षि अरि मित्र माने सब जीव सम भावे । भरे जग भाव मैत्री का, धरम उपदेश फरमावे ॥३ दर्शन अरु ज्ञान चारित्र, आराधत हर्ष नहीं मांवे निराभिमानी निष्पृही, सरल मध्यस्थ कहलावे ॥४॥ विना दर्शन करे प्राप्ती, उदय में ज्ञान नहीं आवे । क्रिया नहीं ज्ञान बिन शुद्धि, गुरु मुख आप फरमावे ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035306
Book TitleYugpravar Shree Vijayvallabhsuri Jivan Rekha aur Ashtaprakari Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Daga
PublisherRushabhchand Daga
Publication Year1960
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy