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( १४ ) आपने स्वयं अनेक बालकों, पुरुषों, बालाओं एवं स्त्रियों को शुद्ध सनातन जैन धर्म की भगवती दीक्षा प्रदान की परन्तु उनके संरक्षकों तथा परिवार वालों एवं श्री संघकी प्रथम आज्ञा प्राप्ति करने के बाद ही बड़े समारोह पूर्वक दीक्षाएँ दो। यह उनकी विशेषता थी। __वस्तु के सदुपयोग के लिये और समय की गति के अनुसार स्वप्नों की बेलियों की उपज के रुपये साधारण खाते में ले जाने का उपदेश दिया ताकि वे रुपये प्रत्येक कार्य में लग सकें तथा जिस क्षेत्र में कमी हो उसकी पूर्ति होती रहे।
जैन-जैनेतरों के उपकार के लिये अनेक कार्य करवाये तथा हरिजनों के लिये भी फंड कर वाया । यहाँ तक कि आपके उपदेशों से प्रभावित होकर हरिजन लोग अनेक तपश्चर्याएँ किया करते थे जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह कि श्री आत्मानन्द जैन गुरु कुल के मेहतर ने एक बार अठाई की थी। उस समय के जैन अध्यापक आज भी प्रमाण रूप में गवाह देने के लिये तैयार बैठे हैं।
भाई-भाई में पक्ष-पक्ष में एकता कराते थे। यहाँ तक कि अनेक शहरों में कुसम्प होने के कारण प्रथम कुसम्प को मिटाकर ही बाद में नगर प्रवेश किया था।
मुनि समुदाय में परस्पर प्रेम बढ़े, श्रावक समुदाय में संगठन हो, विद्यार्थियों को कुछ नवीन जानने को मिले उसके लिये आप श्री ने मुनि सम्मेलन, श्री कान्फ्रेन्स सम्मेलन, पोरवाल
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