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भाषा ने अपना स्थान ग्रहण किया जिसमें स्तोत्र, सज्झाय, स्तवन और आधुनिक प्रचलित राग-रागिनीमय पूजाओं की भांति काव्य रचना बहुत पाई जाती है परन्तु हिन्दी में नहीं ।
उसके बाद विश्व की अनुपम विभूति, नवयुग प्रवर्तक, न्यायाम्भोनिधि, दादा प्रभावक परम पूज्य जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराज तथा उनके अनुकरण में उन्हीं के पट्टधर पंजाब केशरी युगवीर आचार्य पूज्यपाद श्री श्री १००८ श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वरजी महाराज ने बालजीवों के उपकारार्थ स्तवन, सज्झाय, स्तोत्र आदि के साथ-साथ पूजाओं के रूप में वैराग्यमय पदों की रचनाएँ हिन्दी भाषा में की।
तीर्थंकरों की पूजाओं के साथ साथ गुरुओं की पूजाओं का साहित्य भी मिलता है जिसमे मुख्यतः इन पंक्तियों के लेखक द्वारा रचित श्री सूरित्रय अष्ट प्रकारी पूजा, श्री जगत्गुरु अष्ट प्रकारी पूजा और श्री दादा प्रभावक सूरि अष्ट प्रकारी पूजा नामक पूजाओं ने प्रचार मे आज अपना मुख्य स्थान प्राप्त कर लिया है। जिनके द्वारा जनता समय समय पर लाभ प्राप्त करती रहती है।
इन सब बातों को लक्ष्य में रखकर ही मैंने परम प्रभावक, प्रातः स्मरणीय परमपूज्य युग प्रवर जैनाचार्य श्रीश्री १००८ श्रीमद् विजयवल्लभ सूरीश्वरजी महाराज के संक्षिप्त जीवन चरित्र से कलित “श्री गुरुदेव की अष्ट प्रकारी पूजा” नामक यह काव्यमय
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