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रचना मधुर राग रागिनियों में ताल, स्वर में व्यवस्थित कर पाठकों के समक्ष उपस्थित करने का सौभाग्य प्राप्त किया है । जिससे हमें गुरुभक्ति के द्वारा अपनी आत्मा का कल्याण करने के साथ साथ गुरुदेव के बताये मार्गों पर चलने की प्रेरणाएं प्राप्त हों। ताकि धर्म, समाज, साहित्य, शिक्षण के कार्यों को वेग देने में तथा समाजोत्थान के कार्यों में क्रांतिकारी भावना उत्पन्न करने में सफल हों ।
पूजा के साथ साथ गुरुदेव की संक्षिप्त जीवनी का दिग्दर्शन भी इस पुस्तक में कराया गया है । इसीलिए इस पुस्तक का नाम मैंने “युग प्रवर श्री विजयबल्लभ सूरि जीवन रेखा और अष्ट प्रकारी पूजा " रखा है ।
इस स्थल पर एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस रचना की सफलता का समस्त श्रेय एक मात्र परम गुरुदेव के पट्टधर पूज्य शान्तमूर्ति, परम गुरुभक्त जैनाचार्य श्री. श्री १००८ श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वरजी महाराज साहब को ही है; जिनकी सतत प्रेरणाओं के कारण ही यह कृति लेकर पाठकों के समक्ष उपस्थित होने का साहस कर सका हूँ । अतः पूज्य आचार्य श्री का हृदय से आभारी हूँ ।
पूज्य पन्यास मुनि श्री विकास विजयजी महाराज का भी हृदय से आभार मानता हूँ जिन्होंने इस कृति को अति शीघ्र सम्पूर्ण करने के लिये सदैव अपने पत्रों द्वारा मुझे अपने कर्तव्य की याद दिलाई ।
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