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एकांत में गाये जायं तो विश्व के सर्व झंझटों को भूल कर प्राणी आनन्दरस में मग्न हो जाता है।
इस प्रकार गाने योग्य काव्य के शब्द चित्र का साक्षात्कार करने के लिये एक विशेष लक्षण की आवश्यकता है । शब्द चित्र सर्वगुण सम्पन्न हों, भाव हृदयंगम हों तो मनुष्य का मन एक बार सुनने के पश्चात् बारम्बार गाने या सुनने को लालायित रहता है, उसकी जब-जब अन्तरात्मा आनन्द की तरंगों का ‘अनुभव करती है, तब तब उसके कान में मीठी-मीठी मंकार होती रहती है और ऐसी हृदयंगम कविता को वह बारम्बार गाया करता है। उसमें उन शब्द चित्रों का पुनरावर्तन होते -रहने पर भी अत्यधिक आनन्द प्राप्त करता रहता है । ___ यों तो जैन साहित्य में काव्यों की कमी नहीं, जब-जब प्राकृत अपभ्रंश संस्कृत भाषा का प्रचार रहा तब-तब उन-उन भाषाओं में रचित स्तोत्र, स्तवन, सज्झाय और स्तुति आदि की रचना की गई और उन रचनाओं का संग्रह आज भी विशाल रूप में पाया जाता है ।
तत्पश्चात् संस्कृत के साथ-साथ गुजराती भाषा ने प्रचार कार्य में अग्र स्थान ग्रहण किया जिनमें स्तोत्र. सज्झाय, स्तवन, स्तुति आदि के साथ-साथ रासों का लिखा जाना प्रारम्भ हुआ । जैसे कुमारपाल राजा का रास और होर विजय सूरि का रास आदि।
तदुपरान्त गुजराती तथा राजस्थानी भाषा की मिश्रित
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