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________________ ( १० ) इससे स्पष्ट है कि मंडन वि० सं० १५०४ ( ई० स० १४४७ ) तक वर्त्तमान था । + + + + मंडनके बनाये हुए कुल १० ग्रंथ अबतक विदित हुए हैं जो नीचे लिखे अनुसार हैं । ( १ ) कादम्बरी दर्पण. ( २ ) चंपू मंडन. ( ३ ) चंद्रविजय प्रबंध. ( ४ ) अलंकार मंडन. (६) शृंगार मंडन. ( ७ ) संगीत मंडन. ( ८ ) उपसर्ग मंडन. ( ९ ) सारस्वत मंडन. ( ५ ) काव्य मंडन. (१०) कविकल्पद्रुम स्कंध . इनमें से आदिके छ ग्रंथ हेमचंद्राचार्य सभा पाटण की ओर प्रकाशित हो चुके हैं । + + + + उपरि लिखित लेखसे पाठकों को विदित होगा कि मुसलमानी साम्राज्य में भी संस्कृत भाषा की कितनी उन्नत अवस्था थी । बड़े बड़े 'धनिकों और राज्यकर्मचारियोंमें भी इसका कितना प्रचार था । उस समयके धनी लोग कैसे विद्याव्यसनी और विद्वान् होते थे, और विधर्मी होने पर भी मुसलमान बादशाह संस्कृत भाषा पर कितना प्रेम रखते थे । [ नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग ४ अंक १ ] प्यारे सज्जन जैन भाइयो ! ऊपरके लेखसे आपको सुविदित हो गया होगा कि पूर्व कालमें हमारे जैन गृहस्थ स्वधर्मी बंधु कैसे विद्वान् गंभीर परोपकारी दयालु धनी दानी धर्माभिमानी और पराक्रमशाली तथा सत्ताधिकारी राज्यकर्मचारी मंत्री होते थे । और आजकल हमारी. 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035302
Book TitleVeer Ekadash Gandhar Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1928
Total Pages42
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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