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________________ श्रीकृष्णस्य पदद्वन्द्वमधमाय न रोचते अलं० म० परि० ५ श्लो. ३३९ अर्थात् जो नीच होते हैं उन्हें श्रीकृष्णके चरणयुगल अच्छे नहीं लगते । किं दुःवहारि हरपादपयोजसेवा यदर्शनेन न पुनर्मनुज मेति तत्रैव ९७ अर्थात् दुःखको हरण करनेवाला कौन है ? महादेवके चरण कमलों की सेवा, जिनके दर्शनसे फिर मनुष्यत्व प्राप्त नहीं होता ( मोक्ष हो जाता है।) मंडनके जन्म तथा मृत्युका ठीक समय यद्यपि मालूम नहीं होता तथापि मंडनने अपना मंडपदुर्ग ( मांडू ) में वहाँ के नरपति आलम शाहका मंत्री होना प्रकाशित किया है। यदि उपरोक्त अनुमानके अनुसार आलमशाह हुशंग गोरो ही का नाम है तो कहना होगा कि मंडन ईसाकी १५ वीं शताब्दिके प्ररंभमें हुआ था, क्यों कि हुशंगका राज्यकाल ई० स० १४०५ से ई० स० १४३२ है। विक्रम संवत् १५० ४ ( ई० स० १४४७ ) की लिखी मंडनके ग्रंथों की प्रतियाँ पाटणके भांडारमें वर्तमान हैं । इमसे प्रतीत होता है कि ईस्वी सन् १४४७ के पूर्व वह ये सब ग्रंथ बना चुका था । मुनि जिनविजयजी के मतानुसार ये प्रतियाँ मंडन ही की लिखवाई हुई हैं। वि० सं० १९०३ में मंडनने भगवतीसूत्र लिखवाया था* | ___ * संवत् १५०३ वर्षे वैशाखसुदि १ प्रतिपत्तिथौ रविदिने अद्येह श्रीस्तंभतीर्थे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनाजरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरीणामुपदेशेन श्री श्रीमालज्ञातीय सं० मांडण सं० धनराज भगवतीसूत्र पुस्तकं निज. पुण्यार्थ लिखापितम् (पाटण भांडार ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035302
Book TitleVeer Ekadash Gandhar Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherGranth Bhandar
Publication Year1928
Total Pages42
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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