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अधिक बढ़ और सरस्वती लक्ष्मीसे अधिक बढनेका प्रयत्न करती है। मालवेके बादशाहका इसपर बहुत ही प्रेम था। ऐसे ऐसे विद्वानों की संगतिसे बादशाहको भी संस्कृत साहित्यका अनुराग हो गया था । एक दिन सायंकालके समय बादशाह बैठा था । विद्वानोंकी गोष्ठी हो रही थी। उस समय बादशाहने मंडनसे कहा कि “ मैंने कादंबरीकी बहुत प्रशंसा सुनी है और उसकी कथा सुननेको बहुत जी चाहता है । परंतु राजकार्यमें लगे रहनेसे इतना समय नहीं कि ऐसी बड़ी पुस्तक सुन सकूँ। तुम बहुत बड़े विद्वान् हो अतः यदि इसे संक्षेपमें बनाकर कहो तो बहुत ही अच्छा हो" । मंडनने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि " बाणने स्वयं ही कादंबरीकी कथा संक्षेपसे कही है परंतु यदि आपकी आज्ञा है तो मैं इसकी कथा संक्षेपमें निवेदन करूँगा" यह कहकर इसने “ मंडन कादंबरी दर्पण " नामक अनुष्टुप् श्लोकों में कादंबरीका संक्षेप बनाया xxx 1 x x x x x x __ मंडन जैन संप्रदायके खरतर गच्छ का अनुयायी था । उस समय खरतरगच्छके आचार्य जिनराज सरिके शिष्य जिनभद्र सूरि थे। मंडनका सारा ही कुटुंब इन पर बहुत ही भक्ति रखता था और इनका भी मंडनके कुटुंब पर बड़ा ही स्नेह था। x + ___ मंडन यद्यपि जैन था और वीतरागका परम उपासक था परंतु उसे वैदिक धर्मसे कोई द्वेष नहीं था। उमने अलंकार मंडनमें अनेक ऐसे पद्य उदाहरणमें दिए हैं जिनका संबंध वैदिक धर्मसे
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