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अंतकी प्रशस्तिसे विदित होता है कि इसकी माताका नाम गंगादेवी था और इसने ये ग्रंथ * मंडपदुर्ग ( मांडू) में संवत् १४९० विक्रममें समाप्त किये थे।
झंझणके चतुर्थ पुत्र का नाम पद्मसिंह था । इसने पार्श्वनाथ ( संमेद शिखर ) की यात्रा की और व्यापारसे बादशाहको प्रसन्न किया था । इसका भी पद संघपति लिखा है अतः इसने भी यह यात्रा संघके साथ ही की होगी।
पाँचवें पुत्रका नाम “ संघपति आहलू " था । इसने मंगलपुर ( मांगरोल ) की यात्रा की और जीरापल्ली ( जीरावला ) में बड़े बड़े विशाल स्तंभ और ऊँचे दरवाजेवाला मंडप बनवाया और इसके लिए वितान ( चंदवा ) भी बनवाया । ___ झंझणका सबसे छोबा पुत्र पाहू था, इसने अपने गुरु जिनभद्रसरिके साथ अर्बुद ( आबू ) और जीरापल्ली (जीरावला )की यात्रा की थी।
ये झंझणके छहों पुत्र आलमशाह (हुशंगगोरी ) के सचिव थे। ये बड़े समृद्धिशाली और यशस्वी थे । मंडनने अपने काव्यमंडनमें लिखा है कि " कोलाभक्ष राजाने जिन लोगोंको कैद कर लिया था
उन्हें इन धर्मात्मा झंझण पुत्रोंने छुडाया ।" यह कोलाभक्ष कौन था ____ * मांडू उस समय मालवे की राजधानी होनेसे बड़ा ही संपत्तिशाली नगर था । अनेक कोटिपति और लक्षाधीश इस नगरको अलंकृत करते थे। कहते हैं कि इस शहरमें कोई भी गरीब जैन श्रावक नहीं था । कोई जैन गरीबीकी दशामें बाहरसे आता तो वहांके धनी जैन उसे एक एक रुपया देते थे । इन धनियोंकी संख्या इतनी अधिक थी कि वह दरिद्र उस एक एक रुपएसे ही सम्पतिशाली बन जाता था। पृष्ठ ८५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com