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झंझणके छ पुत्र थे जिनमें सबसे बडा चाहिड़ था। वाहड़ने संघके साथ जीरापल्ली ( आधुनिक नीरावला जो आबूके समीप है) की यात्रा की और अर्बुद (आपू) पर्वतकी भी यात्रा के। संघमें जितने मनुष्य थे सभीको द्रव्य, वस्त्र और पनि दिन और संघपतिकी पदवी प्राप्त की। तीर्थ स्थानोंमें बहुतसा धन व्यय किया । इसके दो पुत्र थे जिनमें बड़ेका नाम चंद्र और छोटेका नाम खेमराज था। ___ झंझणके दूसरे पुत्रका नाम बाहड़ था । इसने भी संघपति बनकर रैवतक पर्वत (गिरनार ) की यात्रा की, संघी लोगोंको द्रव्य, वस्त्र और घोड़ दिये । इसके भी दो पुत्र थे। बड़ेका नाम समुद्र (समधर)
और छोटेका मंडन था। यही मंडन हमारे चरित्रनायक मंत्री मंडन है। ___ झंझणका तीसरा पुत्र देहड था । इसने भी संघपति बनकर
अर्बद ( आब ) पर नेमिनाथकी यात्रा संघके साथ की । संघको किसी प्रकारका कष्ट न हो इसका यह बहुतही विचार रखता था । इसने राजा केशिदास, राजा हरिराज और राजा अमरदासको जो जंजीरोंमें पड़े थे परोपकारकी दृष्टिसे छुड़ाया । इनके सिवाय वराट, लूणार और चाहड़ नामके ब्राह्मणोंको भी बंधनसे छुड़ाया था। इसके धन्यरान नामक एक पुत्र था । इसका दूसरा नाम धनपति और धनद भी था । इसने भर्तृहरिशतकत्रय के समान -नीतिधनद, शृंगारधनद और वैराग्य धनद नामक तीन शतक बनाए थे। ग्रंथकी प्रशस्ति नीतिधनद के अंतमें दी है। इससे विदित होता है कि इसने नोतिधनद सबसे पीछे बनाया था । ये शतक काव्यमाला के १३ वें गुच्छकमें (मुंबई निर्णय सागर प्रेससे) प्रकाशित हो चुके हैं। नातिधनदके
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