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यात्रा कराने के लिये यह शत्रञ्जय जी तीर्थयात्राको संघ लेगये थे और वहां के श्री अदिनाथ तीर्थकर के मन्दिर को १२ गांव भेंट किये थे। इनके दोनों राज्य-मन्त्री सांतु और मुंजाल जैनधर्मी थे । सिद्धराज ने सोरठ देश को विजय करके सजन को वहाँ का अधिकारी बना दिया था, जिसने श्री गिरनार जी में श्री नेमनाथ २२ वें तीर्थंकर का बड़ा विशाल जैन मन्दिर बनवाया था। कुमारपाल (११४३-११७४ ई०) बड़े प्रसिद्ध और महायोद्धा सम्राट थे, जो श्वे. जैनाचार्य श्री हेमचन्द्रजी के शिष्य थे और इनके प्रभाव से जैनधर्मी हो गये थे । इन्होंने मंगसिर सुदि दोयज सम्वत् १२१६ को श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे । इनको दूसरे तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी में गाढ़ी श्रद्धा थी। युद्धों में अपनी विजय को यह इन्हीं की भक्ति का फल स्वीकार करते थे। श्री तारंगाजी में इन्होंने करोड़ों रुपयों की लागत से श्री अजितनाथ जी का बड़ा विशाल मन्दिर बनवाया था। इन्होंने शत्रुञ्जय जी, गिरनार जी
आदि अनेक तीर्थ क्षेत्रों पर भी करोड़ों रुपयों की लागत के बड़े सुन्दर जैन मन्दिर बनवाये । दृढ़ जैनी और अहिंसा धर्मी होने पर भी इन्होंने बड़े २ प्रसिद्ध युद्धों में विजय प्राप्त की । इन्होंने चित्तौड़ को जीता, मालवे के राजा को हराया, चन्द्रावती के सरदार विक्रमसिंह पर विजय पाई । पञ्जाब और सिन्ध में अपना
3-2 King Siddharaj Jay Singh showed deep regard for
Jainism. He built a temple to Tirthankara Mahavira at Siddhapur. He took out a Sangha to Shatrunjaya and granted 12 villages for the Adibatha (First Jain Tirthanker's), temple of that holy place. His minsters Munjal and Santu were Jains
-Some Historical Jain Kings & Heroes. P. 88 ३-४ जैन वीरो का इतिहास और हमारा पतन, पृ० ८८-८६ । ५.८ 'श्री हेमचन्द्राचार्य' (आदर्श ग्रन्थमाला मुल्तान) पृ० २३-२५
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