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झण्डा लहराया । दक्षिण में कोङ्कण प्रदेश जीतने के लिये अपने सेनापति अम्बड़ को भेजा, वह बलवान था इसके काबू में न आया तो स्वयं रणभूमि मेंजाकर अपनी तलवार के जौहर दिखाये । इस प्रकार दिग्विजय करके एक विशाल सलकी साम्राज्य स्थापित कर दिखाया' । प्रजा के दुखों को जानने और उनके दूर करने के भाव से वह वेश बदल कर रात्रि में घूमा करते थे । इनके राज्य में प्रजा बड़ी सुखी और खुशहाल थी इनकी राजधानी अनहिलपुर-पाटन में १८०० क्रोड़ाधिपति रहते थे । इनके चरित्र में लिखा है:__ "महाराज कुमारपाल ने १५०० जैन मन्दिर बनवाये । १६००० मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया १४४४ नये जिन मंदिरों पर स्वर्ण कलश चढ़ाये। ६८ लाख रुपया अन्यान्य शुभदान कार्यों में खर्च किया। सातबार संघादिपति होकर हजारों यात्रियों को साथ लें जैन तीर्थयात्रा की, पहली यात्रा में ही ६ लाख रुपये के नवरत्न श्री जिनेन्द्र भगवान की पूजा में चढ़ाये । ७२ लाख रुपया वार्षि, राज्य-कर धावकों को छोड़ा । धनहीन व्यक्तियों को सहायता के लिये एक करोड़ रुपया हर साल दिया । पुत्र हीन विधवाओं को सम्पत्ति राज्यभण्डार में जमा होने का कानून था, जिसमे लगभग ७२ लाख रुपया सालाना की प्रामदनी थी, जैन सम्राट कुमारपाल ने इसका लेना बन्द कर दियो था । इसने शिकार मांस भक्षण, मधुपान, बेश्या सेवन, आदि शप्तविशण्ण कानन द्वारा बन्द कर दिये थे । धर्म के नाम पर हर साल लाखों पशु मारे जात थे इनको बन्द किया। जैनधर्म का विदेशों तक में प्रचार कराया । २१ महान ज्ञान भंडार स्थापित किये । सैकड़ों प्राचीन ग्रंथों की नकलें करवाई । यह निश्चित रुप मे सच्चे प्रादर्श जैनी थे।" १. जैन वीरों का इतिहास पृ० ४३ २-३. जैन वीरों का इतिहास और हमारा पतन पृ० ६५-६६ 8. Kumarpal was without doubt a perfect model of Jain
PURITY & PIETY-Tank: Some Distinguished Jains
(Agra) P, 1-130. ४६४ ]
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