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________________ महाराजा दशरथ की जिन शासन-प्रशंसा मैंने आज मुनि सर्वभूतहित स्वामी के मुख से जिन शासन का व्याख्यान सुना। कैसा है जिन शासन ? सकल पापों का वर्जन हारा है। तीन लोक में जिसका चरित्र सूक्ष्म अति निर्मल तथा उपमा रहित है । सर्व वस्तुओं में सम्यक्त परम वस्तु है और सम्यक्त का मूल जिन शासन है । शरीर, स्त्री, धन, माता-पिता, भाई सब को तज कर यह जीव अकेला ही परलोक को जाता है। चिरकाल देव लोक के सुख भोगे। जब उनसे तृप्ति नहीं हुई तो मनुष्य लोक के भोगों से तृप्ति कैसे हो सकती है ? मैं संसार का त्याग कर के निश्चित रूप संयम धारूंगा। कैसा है संयम ? संसार के दुःखों से निकाल कर सुख करणहारा है । मैं तो निःसंदेह मुनिव्रत धारूंगा' । महाराजा दशरथ जिन दीक्षा लेकर जैन साधु होगये। गृहस्थ तथा राज्यकाल में श्री महाराजा दशरथ जैनी थे और जैन धर्म को पालते थे । इनके सुपुत्र श्री रामचन्द्र जी भी जैनधर्मी थे। जैन मुनि हो, तप करके वे मोक्ष गये और सीता जी ने पृथिवीमती नाम की अर्यिका से जिन दीक्षा ले जैन साधुका हो गई। महाराजा दशरथ के श्रमण अर्थात् जैन मुनियों को नित्य आहार कराने को महर्षि स्वामी बाल्मीकि जी ने भी स्वीकार किया है:___तापसा भुंजते चापि श्रमणाचश्व भुजते ॥ १२ ॥ -बाल्मीकि रामायण बाल० स० १४ श्लोक १२. १. पद्मपुराण; पर्व ३१ पृ० २६३-३०३ Dasar.atha did not die of sorrow but retired into forest to lead the life of ascetic" - Prof.S.. Sharma: Jainism And Karnataka Culture, P. 76. ३-४ फुटनोट नं०१। ५-६. 'श्री रामचंद्र जी की जिनेन्द्र भक्ति', खण्ड १ पृ० ५०. ७. पद्मपुराण, पर्व १०५ पृ० ६१० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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