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________________ बौद्ध ग्रन्थों में वीर-प्रशंसा 'मज्झिम निकाय' में निर्ग्रन्थ* ज्ञातपुत्र* भगवान महावीर को सर्वज्ञ, समदर्शी तथा सम्पूर्ण ज्ञान और दर्शन का ज्ञाता स्वीकार किया है। 'न्यायविन्दु' में भ० महावीर को श्री ऋषभदेव के समान सर्वज्ञ तथा उपदेशदाता बताया है । ___'अंगुत्तर निकाय' में कथन है कि निगंठ* नातपुत्त* भ० महावीर सर्वदृष्टा थे, उनका ज्ञान अनन्त था और वे प्रत्येक क्षण, पूर्ण सजग, सर्वज्ञरूप में ही स्थित रहते थे। _ 'संयुक्त निकाय' में उल्लेख है कि सर्वप्रसिद्ध भ० नातपुत्र महावीर यह बता सकते थे कि उनके शिष्य मृत्यु के उपरान्त कहाँ जन्म लेंगे ? विशेष-विशेष मृत व्यक्तियों के सम्बन्ध में जिज्ञासा करने पर उन्होंने बता दिया कि अमुक व्यक्ति ने अमुक स्थान में अथवा रूप में नव जन्म धारण किया है। 'सामगाम सुत्त' में पांवांपुरी से भ० महावीर के निर्वाण प्राप्त करने तथा उनके श्रमण* संघ के महात्माओं को जनसाधारण को श्रद्धा और आदर के पात्र होने का वर्णन है । १ निग्रन्थों आवुसो नाथपुत्तो सव्व दरस्सी । अपरिसेसे णाण दस्सणं परिज़ानाति ॥ -मज्झिमनिकाय भाग १ पृष्ट ६२-६३ । अर्थात्-निर्ग्रन्थ ज्ञातपत्र महावीर सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं वे सम्पूर्ण ज्ञान और दर्शन के ज्ञाता हैं। २. सर्वज्ञ आप्तो वा सज्योतिर्शानादिकमुपदिष्टवान् । यथा ऋषभ वर्धमानादि रिति ॥ -न्यायविन्दु अध्याय ३। अर्थात्-सर्वज्ञ आप्त ही उपदेशदाता हो सकता है । यथा ऋषभ और वर्धमान । .३. 'बौद्ध ग्रन्थों में भगवान महावीर' : जैन भारती, वर्ष ११ पृष्ट ३२४ । ४. P. T. S.. II P214. ५ 'महात्मा बुद्ध पर वीर प्रभाव' खंड २ । * 'यथा नाम तथा गुण' खंड । । ४८] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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