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________________ ऐतिहासिक युग में सबसे पहला सम्वत, जो वीर-निर्वाण से अगले दिन ही कार्तिक सुदी १ से चालू होता है, जिस दिन हम अपनी पुरानी बहियां बन्द करके नई चालू करते हैं, अवश्य भ० महावीर के सन्मुख भारत निवासियों की श्रद्धा और भक्ति प्रगट करने वाला वीर-सम्वत् है' । इस प्रकार न केवल जैनों पर ही किन्तु अजैनों पर भी श्री वर्तमान महावीर का गहरा प्रभाव पड़ा। वीर-संघ Mahavira's order was so strongly organised that it has triumphed over every vicissitude. It has sur. Gived up to the present day and is still flourishing. -Dr. Ferdinando Bellini-Fillippi, VOA. Vol I. ii. P. 5. जैन धर्म अनादि है ही तो जैन संघ अनादि होने में क्या सन्देह ? इस अवसर्पिणी युग में खरवों वर्षों से भी अधिक हुआ कि श्री ऋषभदेव जी ने जैन धर्म स्थापित किया था। इतने लम्बे समय में लोग अनेक बार अपने कर्तव्य को भूल बैठे थे तो अनेक तीर्थङ्करों ने अपने-अपने समय में लोक-कल्याण के लिये फिर से जैन सङ्घ को दृढ़ किया, जिसके कारण उनके तीर्थकाल में जैन संघ का नाम उनके नाम पर ही लिया जाता रहा, इसी लिये वीर काल के जैन संघ को वीर-संघ कहते हैं। भ० महावीर की शरण में किसी ने मुनिव्रत लिये तो किसी ने श्रावक ब्रत ग्रहण किये, पशुओं तक ने अणुव्रत पाले । जो संसारी पदार्थों का मोह न छोड़ सके वह भगवान के भक्त हो गये थे। ऐसे असंख्य जीव घरों में रह कर ही धर्म प्रभावना करते थे; फिर भी वीर-संघ में महा विद्वान तथा सातों ऋद्धियों के धारी और इन्द्रों तक से पूजनीय, महाज्ञानी ११ गणधर थे, १-२. पं. जयभगवान एडवोकेटः इतिहास में भ० महावीर का स्थान, पृ० ११ । ३६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035297
Book TitleVardhaman Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambardas Jain
PublisherDigambardas Jain
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size134 MB
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